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________________ रोजी, रोटी और अहिंसा ३३६ का प्रश्न ही सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण बन गया था; उसके सामने स्वर्ग और मोक्ष तक के प्रश्न गौण हो गए थे। जैन इतिहास कहता है कि वह विशाल आगमसाहित्य, अन्न के अभाव में तत्कालीन भूख की भयानक ज्वालाओं में भस्म हो गया। उस दुर्भिक्ष के सम्बन्ध में यहाँ तक सुना गया है कि लोग हीरे और मोतियों के कटोरे भर कर लाते थे । वह कटोरा अन्न के व्यापारी को अर्पण करते और हजारों मिन्नतें करते थे, और साथ ही आँसुओं के मोती भी अर्पण कर देते थे। तब कहीं मोतियों के बराबर ज्वार के दाने मिलते थे। उन्हीं दानों पर किसी तरह गुजारा किया जाता था। जब ऐसी भयानक स्थिति थी तो वहाँ ज्ञान, विज्ञान, विचार और विवेक कहाँ ठहरता ? बड़े-बड़े सन्त, त्यागी और वैरागी; जिनको जाना था, वे तो संथारा करके आगे की दुनिया में चले गए । परन्तु जो नहीं जा सके, वे लोग भूख के मारे घबरा गए । जो साधक एक दिन बड़ी शान से साम्राज्य को भी ठुकरा कर आए थे, आज वे ही अन्न के थोड़े-से दानों के अभाव में-रोटी न मिलने पर-डगमगाते दिखाई देते हैं। जटिल प्रश्न __ वास्तव में यह जीवन का जटिल प्रश्न है। जब इसका ठीक तरह से अध्ययन किया जाएगा, तभी तो किसी को सही मार्ग मिल सकेगा अन्यथा चितन के अभाव में सही दिशा नहीं मिल सकती। सही चिंतन करने पर स्पष्टतया मालूम हो सकता है कि वास्तव में भाग्यशाली वही है, जिसकी अन्न-सम्बन्धी आवश्यकता पूर्ण हो जाती है, और जिसकी यह आवश्यकता पूर्ण नहीं होती, उसके भाग्य का कोई अर्थ नहीं रहता । परन्तु आजकल लोगों ने पुण्य की कसौटी दूसरी ही बना रखी है। वे जीवन के पुण्य को हीरे, जवाहरात, सोने और चांदी से तौलते हैं। जहाँ हीरों का ज्यादा ढेर लगा हो, वहाँ ज्यादा पुण्य समझा जाता है। परन्तु जब पुण्य को इस अर्थवाद की तराजू पर तोलना शुरू किया, तभी जीवन में सबसे पहले गड़बड़ी शुरू हुई। अस्तु, देखना यह चाहिए कि इस सम्बन्ध में शास्त्रकार क्या कहते हैं, और अन्य लोग क्या सोचते समझते हैं ? कौन-सा धंधा पुण्यमय ? एक गृहस्थ जो खेती-बाड़ी का धंधा करता है । वह कठोर परिश्रम के द्वारा रोटी कमाता है और गरीब होते हुए भी न्याय-नीति की मर्यादा में रहता है । दूसरा परिवार एक कसाई का है । उसके यहाँ प्रतिदिन हजारों पशु काटे जाते हैं और इस धंधे के कारण उसके यहाँ हीरे और जवाहरात के ढेर लगे हैं। अब यदि किसी को जन्म लेना है तो इन दो परिवारों में से किस परिवार में जन्म लेना पूण्य है। उसका धर्म उसे किधर ले जाएगा ? अगला जन्म वह किसान के यहाँ लेगा या कसाई के यहाँ ? धर्मनिष्ठ किसान गरीब तो है, परन्तु शास्त्रकार की तत्त्व-दर्शी दृष्टि में असली पुण्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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