SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रोजी रोटी और अहिंसा नयाँ करके भी आ सकती है। किन्तु वह रोटी जिसके पीछे अन्याय और अनीति है, बुराई, छल-कपट और धोखा है, वह आत्मा की खुराक के साथ कदापि नहीं रह सकती । वह रोटी जो खून से सनी हुई आ रही है और जिसके चारों ओर रक्त की बूंदें पड़ी हैं, उसे एक अहिंसक कभी नहीं खा सकता । वह रोटी, उस खाने वाले व्यक्ति का भी पतन करती है और जिस परिवार में ऐसी रोटी आती है, उस परिवार, समाज और राष्ट्र का भी पतन करती है । वहाँ न तो साधु का धर्म टिक सकता है और न गृहस्थ का ही धर्म स्थिर रह सकता है । वहाँ धार्मिक जीवन की कड़ियाँ टूट-टूट कर बिखर जाती हैं ? अमृत और विष जहाँ ये दाग कम से कम होते हैं वहाँ वह रोटी अमृतभोजन बन जाती है, जीवन का रस ले कर आती है और उससे आत्मा और शरीर दोनों का सुखद पोषण होता है । न्याय और नीति के साथ, विचार और विवेक के साथ; महारंभ के द्वार से नहीं, अपितु अल्पारंभ के द्वार से आने वाली रोटी पवित्रता का रूप लेती है और वही अमृत भोजन की यथार्थता को सिद्ध करती है । वह अमृतभोजन मिठाई के रूप में भले ही न मिले, वह चाहे रूखा-सूखा टुकड़ा ही सही, तब भी वह अमृत का भोजन है । क्यों ? इसलिए कि उस रूखी-सूखी रोटी को प्राप्त करने के लिए जो उद्योग किया जाता है, वह न्याय, नीति और सदाचार से पूर्ण होता है । ३३५ चाहे दुनियाभर का सुन्दर भोजन थालियों में सजा है, किन्तु यदि विवेक और विचार नहीं है, सिर्फ पेट भरने की ही भूमिका है, तो वह कितना ही स्वादिष्ट और मधुर क्यों न हो, वह अमृत भोजन नहीं है, बल्कि विषभोजन है । भारतीय संस्कृति की ऐसी ही परम्परा रही है, जिसकी जानकारी जैनधर्म या अन्य दूसरे धर्मों को पढ़ने से होती है । मार्ग की तलाश इस प्रकार हिंसा और अहिंसा, अल्पारंभ और महारंभ, छोटी हिंसा और बड़ी हिंसा, जीवन के चारों ओर फैली हुई है । हमें उसी में से मार्ग तलाश करना है और देखना है कि हम आत्मा और शरीर दोनों को एक साथ खुराक किस प्रकार पहुँचा सकते हैं ? कौन-सा मार्ग ऐसा हो सकता है, जिसके अनुगमन से न तो आत्मा को आघात पहुँचे, और न ही शरीर का हनन करना पड़े ? रोटी तक पहुँचने के लिए दो रास्ते हैं । पहला मार्ग वह है - जहाँ महारंभ के द्वार से गुजरना पड़ता है, जिससे खुद के भी और दूसरों के भी हाथ खून से सन जाते हैं और रोटी की तलाश में जिधर भी निकलना पड़े हिंसा का नग्न नृत्य दिखलाई पड़ता है, दूसरा मार्ग है - गृहस्थ के अनुरूप अहिंसा का, जिसके अनुसार अल्प-हिंसा से, विवेक और विचार के साथ चल कर जीवन निर्वाह के लिए रोटी प्राप्त की जाती है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy