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मानव-जीवन और कृषि-उद्योग
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अधिकता का निर्णय होना कठिन है । 'अल्प' और 'अधिक' दोनों ही ऐसे सापेक्ष शब्द हैं कि उन्हें कोई दूसरा चाहिए। हिन्दी भाषा में जैसे 'छोटा' और 'बड़ा' शब्द सापेक्ष हैं। दूसरे की अपेक्षा ही कोई छोटा या बड़ा कहलाता है; अपने आप में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। यही बात 'अल्प' और 'अधिक' के विषय में भी है। इस बात को ठीक तरह समझने के लिए एक उदाहरण दिया जा सकता है। किसी ने प्रश्न किया कि--त्रीन्द्रिय जीव की हिंसा में अल्प पाप है, या अधिक पाप है ? क्या उत्तर होगा ? कोई भी शास्त्र का ज्ञाता यही कहेगा कि श्रीन्द्रिय जीव की हिंसा में एकेन्द्रिय और द्वीन्द्रिय जीवों की हिंसा की अपेक्षा अधिक पाप है और चतुरिन्द्रिए तथा पंचेन्द्रिय की हिंसा की अपेक्षा अल्प पाप है ।
__ कुछ लोग कृषि करने में महारंभ समझते हैं; यदि उनका मन्तव्य पूर्वोक्त अनेकान्तवाद के आधार पर हो, तो मतभेद के लिए गुंजाइश ही नहीं है। यदि वे 'महा' की अधिक लक्षणा करके यह कहते हैं कि कृषि-कार्य में वस्त्रादि के द्वारा आजीविका चलाने की अपेक्षा अधिक आरम्भ' है और वधशाला चलाने या सट्टा करने की अपेक्षा 'अल्प आरम्भ' है तो कोई विवाद न रहता । अपेक्षाकृत 'अधिक आरम्भ' और 'अल्प आरंभ' मानने से कौन इन्कार कर सकता है ? परन्तु जब कृषि में महारंभ बताया जाता है और उसे महारम्भ घोषित किया जाता है, जोकि नरकगति का कारण है, तो यहाँ पर अनेकान्तवाद का परित्याग कर दिया जाता है और मतभेद को खड़ा कर दिया जाता है।
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