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________________ अहिंसा और कृषि सायिक हित के लिए उसका उपयोग नहीं किया है और कर्मादान का मतलब हैव्यवसाय करना । जो सुरंग लगाने का धन्धा करता है, वह 'फोडीकम्मे' नामक कर्मादान का सेवन करता है, किन्तु जो अपनी आवश्यकता-पूर्ति के लिए कार्य करता है वह कर्मादान का सेवन नहीं करता। बहनें भोजन बनाती हैं और जली हुई लकड़ी के कोयले बना कर रख लेती हैं तो क्या उसे 'इंगालकम्मे' कर्मादान कह सकेंगे? नहीं, वह 'इंगालकम्मे' नहीं है । कोयला बना-बना कर बेचना और कोयले बनाने का धन्धा, करना 'इंगालकम्मे' अवश्य है । इसी प्रकार सुरंगें लगा-लगा कर विस्फोट करने का व्यापार करना, फोडीकम्मे कर्मादान है । अपनी, या जनता की आवश्यकतापूर्ति के लिए कुआ खुदवाना कर्मादान नहीं है। एक बार मुझसे प्रश्न किया गया था कि नन्दन मणियार ने एक बावड़ी बनवाई तो वह मेंढक बना । सामान्यतः इसका आशय तो यही निकला कि जो बावड़ी बनवाएगा, वह मेंढक बनेगा ? कहीं-कहीं दूर-दूर तक पानी नहीं मिलता और लोग पानी के लिए बड़ी तकलोफ पाते हैं । अतः मरुधर प्रदेश में प्रायः ऐसा देखा गया है कि लोग अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा, कुआ वगैरह खुदवा कर, जनता की सुख-सुविधा में लगाते हैं । उन्हें उससे कोई स्वार्थ नहीं साधना होता । यह भी वे नहीं जानते कि जहाँ जलाशय बनवाया है, वहाँ वे जीवन में कभी आएँगे भी या नहीं ? आसक्ति हिसार की तरफ कुओं की बहुत कमी है। गांव के बाहर तलैया होती है । सब लोग उसी का पानी पीते हैं। उसमें मलेरिया के असंख्य कीटाणु पैदा हो जाते हैं, पानी सड़ जाता है और लोग वही सड़ा पानी पी कर रोग के शिकार होते हैं । वहाँ के गाँवों की यह दुर्दशा देख कर कुछ लोगों ने सोचा-तलैया का सड़ा पानी पीना, एक प्रकार से जहर ही पीना है । यह जहर समूचे गाँव के स्वास्थ्य को बुरी तरह बर्बाद कर रहा है । ऐसा सोच कर उन्होंने एक कुआ बना लिया और तब मलेरिया का जोर कम हो सका। तो क्या, वे कुआ बनवाने वाले अगले जन्म में मेंढक बनेंगे ? यदि ऐसा नहीं है तो नन्दन मणियार क्यों मेंढक बना ? वास्तव में बात यह है कि नन्दन बावड़ी बनवाने से मेंढक नहीं हुआ। यदि ऐसा होता तो वह किसी दूसरी बावड़ी में मेंढक के रूप में उत्पन्न हो सकता था। सिद्धान्त तो यह है कि उसे अपनी बावड़ी के प्रति ममता उत्पन्न हो गई थी और मृत्यु की अन्तिम घड़ी तक उसमें उसकी आसक्ति बनी रही थी। जब बावड़ी में उसकी ममता और आसक्ति थी, उसे उसमें जाना ही पड़ा । उसका धर्म उसे बावड़ी में मेंढक बनाने के लिए नहीं ले गया, बल्कि उसकी आसक्ति और ममता ने ही उसे बावड़ी में घसीटा और मेंढक बनाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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