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________________ शोषण : सामाजिक हिंसा का स्रोत २६७ इंसान इंसान का शोषक राम को चौदह वर्ष का वनवास क्यों भोगना पड़ा? मंथरा के द्वारा कैकेयी के विचार बदल दिए गए ; कैकेयी की भावना दूषित हो गई, तदनुसार वह गलत ढंग पैदा हुआ कि राम को वनवास मिला, और रामायण की कथा लम्बी होती गई। सारी कहानी आदमी के द्वारा खड़ी की गई और आदमी के द्वारा ही विस्तृत हुई। राम वन में जा कर रहे तो वहाँ रावण सीता को उठा कर ले गया । इस प्रकार आदमी ने आदमी को चैन से नहीं बैठने दिया। और जब राम आततायी रावण को जीत कर वापिस अयोध्या लौटे तो उन्होंने सीता को वनवास दे दिया ! यह सब मनुष्य की ओर से मनुष्य को दुःख देने की एक लम्बी कहानी है । इस सम्बन्ध में चाहे कोई कुछ भी कहता हो, किन्तु मैं अपने बौद्धिक विश्लेषण के आधार पर यह कहता हूँ कि राम ने सीता का त्याग करके न्याय नहीं, अन्याय किया । यदि राम स्वयं भी सीता को पतित समझते होते तो उनका कार्य उचित कहा जा सकता था, परन्तु उन्हें तो सीता के सतीत्व पर और उसकी पवित्रता पर पूर्ण विश्वास था। फिर भी उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी को भयानक जंगल में छोड़ दिया ! जो राम प्रभावशाली रावण के सामने नहीं झुके, वे एक नादान धोबी के सामने झुक कर इतिहास की बहुत बड़ी भूल कर बैठे ! यदि उन्हें राजा का आदर्श उपस्थित करना ही था तो वह स्वयं सिंहासन छोड़ कर अलग हो जाते ! परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्थल पर वे आदर्श राजा का उदाहरण भी उपस्थित नहीं कर सके । आदर्श राजा अभियुक्त को अपनी सफाई देने का अवसर देता है, पर राजा राम ने सीता को ऐसा अवसर नहीं दिया । यहाँ तो सीता को अभियोग का पता भी नहीं लगने दिया गया; और पता भी तब लगा, जबकि उसे दण्ड दिया जा चुका था। बताइए-सीता पर यह दुःख कहाँ से आ पड़ा ? राम ने ही तो उस पर यह दुःख लाद दिया था। इस प्रकार आदमी ने ही आदमी पर दुःख लाद दिया। पति ने ही पत्नी को दुर्दिन के दावानल में झोंक दिया! सीता को कैसे रहस्यपूर्ण ढंग से, यात्रा कराने के बहाने लक्ष्मण वन में ले जाते हैं। वन में पहुंचने पर सीता के परित्याग का जब अवसर आता है तो लक्ष्मण के धैर्य का बाँध टूट जाता है--वन्य-पशुओं की वेदनामय और अश्रु पूर्ण सहानुभूति पा कर उनकी करुणा फूट पड़ती है ! आज तक लक्ष्मण रोया नहीं था । संकट में, विषमता में, कभी उसने आँसू नहीं बहाया था। यहाँ तक कि मेघनाद के द्वारा शक्तिबाण लगने पर भी उसकी आँखों से एक आँसू नहीं गिरा । पर, आज वही धैर्य की अचल प्रतिमा-सा लक्ष्मण क्यों रो पड़ा ? और सीता के पूछने पर जब उसने रहस्य खोला तो सीता भी रो पड़ी। सारा वन रुदन करने लगा, पशु और पक्षी भी रोने लगे। उस समय लक्ष्मण ने कहा था- 'देखो, इन हिरनों को ! हरीहरी दूब खाना छोड़ कर ये रो रहे हैं ! और ये हंस शोक के मारे कैसा करुणक्रन्दन कर रहे हैं ! सीता की मुसीबत देख कर मयूरों ने नाचना बन्द कर दिया है। सम्पूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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