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अहिंसा-दर्शन
बातें केवल कहने मात्र ही थीं। "संसार में एकमात्र परब्रह्म की ही सत्ता है", यह उपदेश संसार को तो खूब अच्छी तरह सुनाया, पर अपने मन का काँटा आज तक नहीं निकल सका था। मन का विष-विकार नहीं गया था। उसे आज आपने निकाल दिया । अतएव आप ही मेरे सच्चे गुरु हैं । आपने मेरे नेत्र खोल दिये हैं।
वह सत्य का चमत्कार था, जिसके कारण चाण्डाल को मार्ग से हटाने वाले आचार्य शंकर जरा-सी बात सुनते ही सन्मार्ग पर आ गए, सामान्य लोग उसकी अवहेलना करते हैं। कल्पित दीवारें
इस प्रकार जातीयता के नाम पर ऊँच-नीच की ये कल्पित दीवारें खड़ी करना सामाजिक हिंसा है । निश्चित रूप से यह समझने की चीज है कि मनुष्य के हृदय में जितनी ज्यादा संकीर्णता तथा घृणा बढ़ती है, उतनी ही अधिक हिंसा घर करती जाती है। कुछ वर्ष पूर्व विदेशी प्रभुत्व से मुक्त हो कर भारत ने राजनीतिक स्वतन्त्रता तो प्राप्त की, परन्तु वह मानसिक संकीर्णताओं से मुक्त नहीं हो पाया। जिसका दुःखद परिणाम हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के रूप में प्रकट हुआ और रक्त की नदी तक बह निकली ? लाखों और करोड़ों आदमी इधर से उधर आ-जाकर बर्बाद भी हो गए। यह सब अमानुषिकताएं क्यों हुईं ? यह साहसपूर्वक कहा जा सकता है कि यह एकमात्र घृणा का ही दुष्परिणाम था । जब तक यह घृणा दूर नहीं होगी, तब तक हम अछूतों से प्रेम नहीं कर सकेंगे और हिन्दू तथा मुसलमान भी साथ-साथ नहीं बैठ सकेंगे । सारांश में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि जब तक हमारे मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार की संकीर्णता रहेगी, तब तक सामाजिक हिंसा की यह परम्परा चालू ही रहेगी और एक रूप में नहीं, तो दूसरे रूप में वह सामूहिक घृणा उत्पन्न करती रहेगी।
मनुष्य-जाति आज अनेक टुकड़ों में बँट गई है और प्रत्येक टुकड़ा दूसरे टुकड़े के प्रति घृणा का भाव प्रदर्शित करता है। आज कोई किसी के आचार-विचार को नहीं पूछता है, सिर्फ जाति को ही पूछता है और उसी के आधार पर उच्चता और नीचता का काल्पनिक नाप-तौल करता है। इन कल्पनाओं की बदौलत ही भारत मिट्टी में मिल गया, और यह दुर्भाग्य की बात है कि भारतवासियों ने इतिहास से आज तक कोई सबक नहीं सीखा।
जिस दिन भारतवासी मनुष्य के आचार-विचार की इज्जत करेंगे, मनुष्य का मनुष्य के रूप में आदर करना सीखेगे और प्रत्येक मनुष्य दूसरे मनुष्य को भाई की निगाह से देखेगा, तभी भारत में 'सामाजिक अहिंसा' की प्रतिष्ठा होगी और उस अहिंसा के फलस्वरूप ही सुख और शान्ति का संचार होगा।
८ चाण्डालोऽस्तु स तु द्विजोऽस्तु,
गुरुरित्येषा मनीषा मम ।
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