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________________ पवित्रता से सामाजिक अहिंसा की प्रतिष्ठा २५३ आज जिधर भी दृष्टि दौड़ाते हैं, उधर ही घृणा और द्वेष के अशुभ चिन्ह दिखाई देते हैं । वस्तुतः मन की संकीर्णता ही सबसे बड़ी और व्यापक हिंसा है । मनुष्य मनुष्य से घृणा और द्वेष कर रहा है यह हमारे दूसरे वर्ग का है तो द्वेषभाव प्रदर्शित करेंगे । जात-पाँत के नाम पर, प्रान्त के नाम पर घृणा प्रसारित कर चुके हैं, कि यदि शीघ्र ही उनको दूर न कर सके तो हमारे जीवन का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा । जन्म नहीं, कर्म मनुष्य जन्म से ऊँचा- नीचा होता है या कार्य से ? यदि कोई जन्म से श्रेष्ठ होता है तो जैन- दृष्टि से रावण क्षत्रिय था और वैदिक दृष्टि से ब्राह्मण था; अतः उसमें जन्मजात पवित्रता और उच्चता विद्यमान थी । फिर भी उसे सामाजिक घृणा क्यों मिली ? भारत का इतिहास लिखने वाला प्रत्येक इतिहासकार रावण के प्रति क्यों व्यापक घृणा व्यक्त करता आ रहा है ? अभिप्राय यह है कि जन्म से कोई ऊँचाई नहीं आती । यही कारण है कि जब भी कभी जन्मजात उच्च कहलाने वाला व्यक्ति गलत मार्ग पर चलता मालूम होता है, भारतीय इतिहासकार उस दुराचार की निन्दा करने को तैयार होता है और उस बुराई का तिरस्कार करने में अणुमात्र भी संकोच अनुभव नहीं करता | इतिहास ने यह नहीं देखा कि रावण क्षत्रिय था या ब्राह्मण ? उसका जन्मजात क्षत्रियत्व या ब्राह्मणत्व सामने नहीं आया, किन्तु उसका कर्म ही प्रकाश में आया । वही जांचा और परखा गया । इसके विपरीत बाल्मीकि का जीवन चरित्र देखा जाता है । बाल्मीकि अपने प्राथमिक जीवन में लुटेरे थे । उन्होंने दूसरों को मारना और दूसरों की जेब टटोलना ही सीखा था । इसके सिवाय उसके सामने जीवन-यापन का दूसरा रास्ता नहीं था और उसी पर बिना किसी हिचकिचाहट के चले जा रहे थे । उनके हाथ खून से भरे रहते थे । किन्तु जब जीवन की पवित्र राह मिली और उन्होंने उस पर पदार्पण किया तो अपनी परम्परागत सभ्यता और संस्कृति के नाते भारतीय समाज ने उन्हें ऋषि और महर्षि की पदवी दी और संत-समाज में उन्हें आदर का स्थान मिला । जैन दर्शन के अनुसार हरिकेशी चाण्डाल - कुल में उत्पन्न हुए और सब ओर से उन्हें भर्त्सना और घृणा मिली । वे जहाँ कहीं भी गए अपमान रूप विष के प्यालों से ही उनका स्वागत हुआ। कहीं भी समभाव सूचक अमृत का प्याला नहीं मिला । पर जब वे जीवन की पवित्रता के सही मार्ग पर आए तो वन्दनीय और पूजनीय हो गए । देवताओं ने उनके चरणों में मस्तक झुकाया और तिरस्कार करने वाले ब्राह्मणों ने भी उनकी पूजा और स्तुति की। अर्जुन माली की जीवन कथा भी किसी से छिपी हुई नहीं है । नरहत्या जैसा जघन्य कर्म करने वाला और हिंसक वृत्ति में आकण्ठ डूबा हुआ अर्जुन माली, एक दिन मुनि के महान् पद पर प्रतिष्ठित होता है, भगवान् महावीर उसे प्रेम से अपनाते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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