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अहिंसा-दर्शन
ईसाईधर्म में अहिंसा-भावना
महात्मा ईसा ने कहा है कि-"तू तलवार म्यान में रख ले, क्योंकि जो लोग तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से ही नाश किये जायेंगे।"२१ अन्यत्र भी बतलाया है-"तुम अपने दुश्मन को भी प्यार करो और जो तुम्हें सताते हैं, उनके लिए भी प्रार्थना करो । यदि तुम उन्हीं से प्रेम करो, जो तुमसे प्रेम करते हैं, तो तुमने कौन मार्के की बात की ?"२२ इतना ही नहीं, वरन् अहिंसा का वह पैगाम तो काफी गहरी उड़ान भर बैठा है। "अपने शत्रु से प्रेम रखो, जो तुमसे वैर करें, उनका भी भला सोचो और करो। जो तुम्हें शाप दें, उन्हें आशीर्वाद दो। जो तुम्हारा अपमान करे, उसके लिए प्रार्थना करो । जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी तरफ दूसरा गाल भी कर दो। जो तुम्हारी चादर छीन ले, उसे अपना कुर्ता भी ले लेने दो।२३ ईसा का यह संदेश अहिंसा का कितना बड़ा उदाहरण है ! "यदि तू प्रार्थना के लिए धर्ममन्दिर में (चर्च) में जा रहा है, उस समय तुझे याद आ जाय कि अमुक व्यक्ति से खटपट या अनबन है तो वापिस लौट जा और विरोधी से अपने अपराध की क्षमायाचना कर। अपने अपराधों की क्षमायाचना किये बिना तुझे प्रार्थना करने का अधिकार नहीं है।" यहूदीधर्म में अहिंसा-भावना
यहूदीमत में कहा गया है कि-"किसी आदमी के आत्म-सम्मान को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए। लोगों के सामने किसी आदमी को अपमानित करना उतना ही बड़ा पाप है, जितना उसका खून कर देना ।" २४
“यदि तुम्हारा शत्रु तुम्हें मारने को आए और वह भूखा-प्यासा तुम्हारे घर पहुँचे, तो उसे खाना दो, पानी दो ।"२५
“यदि कोई आदमी संकट में है, डूब रहा है, उस पर दस्यु-डाकू या हिंसक शेर-चीते आदि हमला कर रहे हैं, तो हमारा कर्त्तव्य है कि हम उसकी रक्षा करें।" प्राणिमात्र के प्रति निर्वैरभाव रखने की प्रेरणा प्रदान करते हुए यह बतलाया गया है कि-'अपने मन में किसी के भी प्रति वैर का दुर्भाव मत रखो ।'२६
२१ मत्ती। २२ मत्ती २३ लूका २४ ता० बाबा मेतलिया २५ नीति, २६ तोरा
---२१५११५२ -५।४५४६
-६२७।३७ । --मेतलिया-५८ (ब)।
-२५।२१ परमिदास -लैव्य व्यवस्था १६।१७
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