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अहिंसा-दर्शन
सड़क पर जूठन का पानी डाला जाता है और उस जूठन में मिले हुए चावलों के कणों को उठाने के लिए भूखे और गरीब, कुत्तों की तरह उन पर झपटते हैं । यह सारी स्थिति वे अपनी आँखों से देखते हैं, फिर भी उन्हें तरस नहीं आता। वे अपने हिसाब में मस्त रहते हैं-दो लाख से पाँच लाख हो गए, और पाँच लाख से दस लाख हो गए । मन्दिर में तो घी के दीपक जलाते हैं, किन्तु किसी भूखे को अन्न का दाना भी नहीं दिया जाता।
ठीक है, व्यापारी जब व्यापार करता है तो धन का संग्रह भी उसके पास होगा ही । परन्तु आचार्यों ने कहा है-'तू सौ हाथों से बटोर और हजार हाथों से बिखेर"५ अर्थात् -- संग्रह करने की शक्ति जो तुममें है, उससे दसगुनी शक्ति उस सम्पत्ति को बाँटने की होनी चाहिए । जब सौ हाथों से कमाने की शक्ति है तो हजार हाथों से बाँटने की शक्ति भी प्राप्त कर। जब इस ओर लक्ष्य नहीं दिया जाता है और स्वार्थ ही जीवन का एकमात्र केन्द्रबिन्दु बन जाता है, तो वहाँ सामाजिक हिंसा आ जाती है।
चौथा वर्ग शूद्रों का है। उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से मानी गई है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज तो 'शूद्र' शब्द घृणा और तिरस्कार का पर्यायवाचीसा बन गया है । शूद्र का नाम लिया कि लोगों की त्यौरियाँ चढ़ जाती हैं और अपने आपको ऊँचा मानने वाले लोग नाक-भौंह सिकोड़ने लगते हैं। आप समाज-सेवा के अपने पवित्र दायित्व को भुला कर सिर्फ व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करते हैं, जबकि अधिकांश शूद्र आज भी समाज-सेवा का कठिन उत्तरदायित्व सेवा के लिए ही वहन कर रहे हैं । किन्तु जब वे इन्सान की तरह आपके पास बैठना चाहते हैं तो आप उन्हें पास बैठाना भी नहीं चाहते । यह कितने आश्चर्य की बात है ! इन्सान को नहीं
आपकी मोटरों में कुत्ते और बिल्ली को तो जगह मिल सकती है । आपकी गोद में कुत्ते को स्नेहपूर्ण स्थान मिल सकता है । बिल्ली, भले ही कितने चूहों को मार कर आ गई हो, पर वह आपके चौके के कोने-कोने में बेरोक-टोक चक्कर लगा सकती है और आप उसे प्यार भी कर सकते हैं, किन्तु मानव-देहधारी शूद्र को यह हक हासिल नहीं है ! इन्सान को इन्सान के पास बैठने का भी हक नहीं है ! पास बैठने का हक देते हैं या नहीं, उसका फैसला बाद में करेंगे, किन्तु आप तो धर्मस्थान में भी उसे प्रवेश नहीं करने देते ! जब ऐसी विषमता है तो मैं सोचता हूँ कि इससे बढ़कर और क्या सामाजिक हिंसा होगी कि एक ओर तो आप अपनी पवित्रता का ढोल पीटते रहें और दूसरी ओर दूसरों की छायामात्र से भी नफरत करते जाएँ।
___एक जगह एक हरिजन भाई आता है और बड़े प्रेम से उच्च विचार ले कर
५ "शतहस्तं समाहर, सहस्रहस्तं संकिर।"
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