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अहिंसा के संदर्भ में धर्म युद्ध का आदर्श
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कूणिक युद्ध करके नरक में गया है, चूंकि उसने न्यायनीति को तिलांजलि दे कर अधर्मयुद्ध लड़ा था। आज आपके सामने ठीक वही प्रश्न यथावत् है कि आप भी शरणागतों की रक्षा के प्रश्न पर युद्ध के लिए ललकारे गए हैं, युद्ध करने को विवश किये गए हैं । प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने बड़े धैर्य से काम लिया है, करोड़ों विस्थापितों का वह भार उठाया है, जो देश के अर्थतन्त्र को चकनाचूर कर देता है। आठ-आठ महीने तक प्रतीक्षा की है, कि कुछ सूधार हो जाए, विश्व के प्रमुख राष्ट्रों को जाजा कर सही स्थिति समझाई है। परन्तु जब कुछ भी परिणाम नहीं आया और पाकिस्तान की दुःसाहसी सैनिक टोली ने रणभेरी बजा ही दी, तो इन्दिराजी ने भी उत्तर में रणदुन्दुभी बजा दी है, भारत के नौजवान सीमा पर जूझ रहे हैं । युद्ध हो रहा है। भारतीय तत्त्वचिन्तन के आधार पर यह धर्मयुद्ध है और अंततः विजय धर्मयुद्ध की ही होती है। “यतो धर्मस्ततो जयः"-जहाँ धर्म है, वहीं विजय है । 'सत्यमेव जयते, नानृतम्' सचाई की ही विजय होती है, झूठ की नहीं। ।
श्रद्धेय कविश्रीजी का यह प्रवचन ६-१२-७१ को प्रातः ६ बजे हुआ था। और उसी दिन संसद में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने ऐतिहासिक निर्णय के रूप में भारत द्वारा “बांगलादेश की मान्यता" की ऐतिहासिक घोषणा की थी।
आज स्थिति बहुत कुछ बदल चुकी है। बांगलादेश स्वतन्त्र हो चुका है । युद्ध दोनों ओर से थम चुका है । हम नवोदित धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बांगलादेश की सर्वतोमुखी उन्नति की हार्दिक कामना करते हैं। और समय पर सर्वथा उचित निर्णय लेने के लिए प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधीजी का अभिनन्दन करते हैं, साथ ही देश के बहादुर जवानों पर गर्व करते हैं, जिन्होंने सत्य एवं न्याय की विजय के लिए संघर्ष किया।
–सम्पादक
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