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अहिंसा-दर्शन
के लिए एक अंग को काट दिया जाता है और सारे शरीर को बचा लिया जाता है । इस उदाहरण के सन्दर्भ में जैनदर्शन के अनुसार हमारी यह परम्परा है कि जहाँ बड़ी हिंसा होने वाली है, या हो रही हो, तो वहाँ छोटी हिंसा का जो प्रयोग है, वह एक प्रकार से अहिंसा का ही रूप है । अहिंसा इसलिए है कि वह एक बड़ी हिंसा को रोकने के लिए है । वह हिंसा तो है, लेकिन इस हिंसा के पीछे दया छिपी हुई है, उसके मूल में करुणा छिपी हुई है, और उसके पीछे एक महान् उदात्त भावना है कि यह जो बड़ी हिंसा हो रही है, उसे किसी तरह समाप्त किया जाए। इसी कारण इसको जैनदर्शन के अन्दर आदर दिया गया है । युद्ध, अहिंसा और नैतिक आदर्श
विचार कीजिए कि रावण सीता को चुरा कर ले जाता है । और विरोध में सीता के लिए रामचन्द्रजी लंका पर आक्रमण करते हैं। इस प्रकार एक भयंकर युद्ध हो जाता है। प्रश्न केवल एक सीता का है । और उसमें भी सीता को कोई कत्ल तो नहीं कर रहा था ; सीता की कोई हिंसा तो नहीं हो रही थी। लेकिन विचारणीय तो यह है कि किसी को मार देना ही तो हिंसा नहीं कही जाती ; बल्कि किसी के नैतिक जीवन को बर्बाद कर देना भी हिंसा है। क्योंकि अनैतिकता अपने आप में स्वयं हिंसा हो जाती है । विचार कीजिए, रावण ने एक सीता का अपहरण कर जो सामाजिक अन्याय किया है, यदि उस अन्याय को नहीं रोका जाता है, तो अन्याय जनमानस पर हावी हो जाता है, न्याय की प्रतिष्ठा ध्वस्त हो जाती है, और उसकी देखादेखी भविष्य में और भी अन्याय फैल सकता है। इस दृष्टि से किया गया अन्याय का प्रतिकार धर्म के क्षेत्र में आता है ।।
राजनीति के अन्दर दंड की जो परम्परा है, वह भी इसलिए है कि जो अन्याय और अत्याचार का दायरा लम्बा होता है, फैलता जाता है, उस पर नियन्त्रण किया जाए, क्योंकि यदि उसे नियंत्रित नहीं किया जायगा तो वह निरन्तर फैलता ही चला जायगा। अत: उसको रोकने के लिए अमुक प्रकार के कदम उठाये जाते हैं, जिससे कि एक छोटे कदम के द्वारा, वह जो बड़े कदम के रूप में अन्याय, अत्याचार होने वाला है, उसको रोका जाए । प्रस्तुत प्रसंग में यदि केवल बाहर में ही स्थूलदृष्टि से देखा जाए, तो यही कहेंगे कि राम ने एक सीता के लिए लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया । यह तो बहुत बड़ी हिंसा हो गई ! एक के लिए अनेकों का संहार! लेकिन नहीं, यह तो एक छोटी हिंसा है। और वह जो उचित प्रतिकार न करने पर अन्याय-अत्याचार अनर्गल रूप पकड़ता जाता, वह बड़ी हिंसा होती । तो, उस बड़ी हिंसा को रोकने के लिए ही युद्ध के रूप में यह छोटी हिंसा लाजमी हो गई थी। इसलिए राम की ओर से जो युद्ध लड़ा गया था, वह धर्मयुद्ध था। इसके विपरीत रावण की तरफ से जो युद्ध लड़ा गया, वह अधर्मयुद्ध था। युद्ध एक ही है; और इसमें दोनों ओर हिंसा हुई है, दोनों ओर से मारे गए हैं लाखों आदमी,
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