________________
द्रव्यहिंसा-भावहिंसा
१५६
है। इसके दूसरे पक्ष को जब तक नहीं समझेंगे, तब तक अहिंसा की साधना पूर्ण नहीं होगी । यदि नहीं मारना ही अहिंसा की पूर्णता होती, तो वीतरागी पुरुषों ने करुणा और दया जैसे शब्दों का आविष्कार नहीं किया होता ? जब दया और करुणा जैसे शब्द हमारे शास्त्र में लिखे गए हैं, तो उनका कोई अर्थ भी अवश्य है और वह अर्थ यही है कि प्राणिमात्र की सुख-शान्ति की मधुर भावनाएँ हमारे हृदय को सदा पवित्र और शान्त बनाए रखें।
ऊपर के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि बन्धन मोह में है, राग-द्वेष में है । राग-द्वेष की भावना से किसी का प्राणवध करना हिंसा है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमने अहिंसा को भी वस्तुनिष्ठ नहीं, भावनिष्ठ माना है । भाव-हिंसा
___ इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भावहिंसा क्या है ? जब किसी की आत्मा में किसी के प्रति द्वेष जगा तो हिंसा हो गई तथा किसी भी रूप में असत्य का संकल्प, चोरी का संकल्प और व्यभिचार का दुर्भाव आया ; इसी प्रकार कभी क्रोध, मान, माया और लोम की भावनाएँ जगीं, जो जीवन को अपवित्र बनाती है तो हिंसा हो गई और इसे ही हम भावहिंसा कहते हैं । भावहिंसा : स्वघाती शत्रु
___ भावहिंसा से सर्वप्रथम हिंसक का ही नाश होता है। यदि किसी के मन में क्रोध आया और ज्यों ही क्रोध ने उसे धर दबाया कि मन में आग लग गई और उसने किसी का सर्वनाश करने का विचार कर लिया। बस, जिस समय यह भाव आया कि हिंसा हो गई । दूसरे को मारना या उसको पीड़ा पहुँचाना, किसी के लिए हर समय शक्य नहीं होता । यदि कोई उससे दुर्बल होगा तो उसके सामने वह अपनी शक्ति का उपयोग कर सकता है। यदि वह उससे अधिक शक्तिशाली है, तब तो वह स्वयं जल कर रह जाएगा और अपने प्रतिद्वन्द्वी का कुछ बिगाड़ भी पाएगा। इस तरह वह बाहर से हिंसा करता है अथवा नहीं करता है, किन्तु खुद तो अन्दर ही अन्दर जलता ही रहता है।
_ कुछ बच्चे एक बच्चे को चिढ़ाते हैं और गन्दा कह कर उसका मजाक करते हैं । वह खिसिया कर कहता है—-मैं गन्दा हूँ ? अच्छा गन्दा ही सही । अब वह अपने हाथ में कीचड़ लेता है और दूसरे बच्चों पर उछालने के लिए उनके पीछे दौड़ता है। बच्चे तेजी से भाग जाते हैं और वह उन पर कीचड़ नहीं उछाल पाता । यदि उछाल भी देता है तो दूसरों पर कीचड़ पड़ी या न पड़ी, परन्तु उसका हाथ तो कीचड़ से भर ही गया ! यदि कीचड़ उछालने वाला तेज दौड़ता है और दूसरों पर डाल देता है, तब भी उसका हाथ तो कीचड़ से भरेगा ही। अगर दूसरे बालक तेज हैं, और वह उन पर कीचड़ नहीं डाल पाता, तो वह अपना गन्दा हाथ लिए मन ही मन जलता है । इस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org