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अहिंसा-दर्शन
जैन आगमों, दर्शनों एवं साधना-पथों में ही अहिंसा को सर्वोपरि माना गया है, ऐसी बात नहीं, विश्व के सभी धर्मों ने अहिंसा को एक स्वर से स्वीकारा है।
बौद्धधर्म में अहिंसक व्यक्ति को आर्य (श्रेष्ठ पुरुष) कहा गया है। उसका अटल सिद्धान्त इसी भावना पर आधारित है कि मानव दूसरों को अपनी तरह जान कर न तो किसी को मारे और न किसी को मारने की प्रेरणा करे ।५ जो न स्वयं किसी का घात करता है न दूसरों से करवाता है, न स्वयं किसी को जीतता है, न दूसरों से जितवाता है, वह सब प्राणियों का मित्र होता है, उसका किसी के साथ वैर नहीं होता ।
वैदिक धर्मों में भी 'अहिंसा परमो धर्मः' के अटल सिद्धान्त को समक्ष रख कर उसकी महत्ता को स्वीकारा गया है । अहिंसा ही सबसे उत्तम एवं पावन धर्म है, अत: मनुष्य को कभी भी, कहीं भी और किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए। जो कार्य तुम्हें पसन्द नहीं उसे दूसरों के लिए भी न करो। इस नश्वर जीवन में न तो किसी प्राणी की हिंसा करो और न किसी को पीड़ा पहुँचाओ, बल्कि सभी आत्माओं के प्रति मैत्री-भावना स्थापित कर विचरण करते रहो । किसी के साथ वैर न करो।
यही नहीं, अपने को लड़ाकू एवं बलिदानप्रिय धर्म की दुहाई देने वाले इस्लामधर्म के भीतर झांक कर देखें, तो वह भी अहिंसा की नींव पर टिका हुआ प्रतीत होगा। इस्लामधर्म में भी कहा गया है-"खुदा सारी दुनिया (खल्क) का पिता (खालिक) है। दुनिया में जितने प्राणी हैं, वे सब खुदा के बन्दे (पुत्र) हैं। कुरान-शरीफ की शुरूआत में 'विस्मिल्लाह रहिमानुर्रहीम' कह कर खुदा को रहम का देव कहा है, कहर का नहीं । हजरत अली साहब ने तो पशु-पक्षियों तक पर रहम करने को कहा है'हे मानव, तू पशु-पक्षियों की कब्र अपने पेट में मत बना ।' कुरानशरीफ का एलान है कि 'जिसने किसी की जान बचाई-उसने मानो सारे इन्सानों की जिन्दगी बख्शी।'
५ सव्वे तसंति दण्डस्स, सव्वेसं जीवितं पियं । अत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये ।।
-धम्मपद १०।१ ६ यो न हन्ति न घातेति, न जिनाति न जायते ।
मित्तं सो सव्वभूतेसु वेरं तस्स न केनचीत ।। -इतिवृत्तक, पृ० २० ७. अहिंसा परमो धर्मः सर्वप्राणभृतां वरः । तस्मात् प्राणभृतः सर्वान् मा हिस्यान्मानुषः क्वचित् ।
-~-महाभारत आदिपर्व १।१।१३ ८. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् । ६. न हिंस्यात् सर्वभूतानि, मैत्रायणगतश्चरेत् । नेदं जीवितमासाद्य वैरं कुर्वीत केनचित् ॥
__-महाभारत, शान्तिपर्व २७८।५ १०. व मन् अहया हा फक अन्नया अह्यन्नास जमीअनः। -कुरान शरीफ ५३५
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