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कठिन है कि इन प्रवचनों का सम्पादन पूर्णतया सफल हो सका है। प्रवचनों के सम्पादन में उपाध्यायश्रीजी महाराज के भावों को अक्षुण्ण रखने का भरसक ध्यान रखा गया है तथापि कहीं भाषा में विरूपता या स्खलना हो गई हो तो उसके लिए पाठक क्षमा करें।
उपाध्यायश्रीजी महाराज के द्वारा अहिंसा-सम्बन्धी ये प्रवचन किसी एक सम्प्रदाय, पक्ष या मत को ले कर नहीं किये गए हैं, अहिंसा-सम्बन्धी जो सार्वजनिक और निष्पक्ष मन्तव्य है, उसे ले कर ही आपने ये प्रवचन किए हैं, सम्भव है, परम्परागत धारणाओं के कारण किसी का उनसे मतभेद हो, फिर भी यदि वे सज्जन निष्पक्षता और गम्भीरता से विचार करेंगे तो उनका मनःसमाधान होना कठिन नहीं है ।
आशा है, पाठक अहिंसा के सम्बन्ध में इन प्रवचनों को पढ़ कर हृदयंगम करेंगे और अपने सर्वक्षेत्रीय जीवन को अहिंसा से अनुप्राणित बनाएँगे ।
जैनभवन, लोहामंडी आगरा-२ ता० १२-४-७६
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- मुनि नेमिचन्द्र
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