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________________ अहिंसा-दर्शन हस्तीतापसों का मत प्राचीन काल में अनेकविध तपस्वी होते थे। उनमें से हस्तीतापस घोर तपस्या तथा कठिन व्रतों का पालन करते थे । जब पारणे का दिन आता, तो वे विचार करते थे कि यदि हम वन-फल खाएँगे तो असंख्य और अनन्त जीव मरेंगे । यदि अनाज आदि खाएँगे, तो उसमें भी जीव होते हैं, फलत: सेर-दो सेर अन्न खाने पर अनेक जीव मारे जाएंगे। इसमें हिंसा ज्यादा होगी। तो फिर क्यों न किसी एक ही स्थूलकाय जीव को मार लिया जाए, जिसे हम भी खाएं, दूसरों को भी खिलाएँ, और साथ ही हिंसा की मात्रा भी कम हो। यह सोच कर वे जङ्गल में एक हाथी को मार लेते थे और कई दिन तक उसे सुविधा-पूर्वक खाते रहते थे। निस्सन्देह उनका यही विचार था कि हम ऐसा करते हैं तो हिंसा कम होती है । परन्तु भगवान् महावीर ने कहा है कि ऐसा समझना बिल्कुल गलत है । तुम्हें तो जीवों के गिनने की आदत हो गई है कि वनस्पति में जीवों की संख्या अधिक है तो हिंसा भी अधिक होगी, किन्तु एक हाथी को मार लिया तो संख्या के अनुसार हिंसा कम हो गई । परन्तु ऐसा कदापि न समझो। जब वनस्पति-स्वरूप एकेन्द्रिय की हिंसा होती है, तब भावों में अधिक तीव्रता नहीं होती। उस समय मन में उग्र घृणा और द्वेष के भाव पैदा नहीं होते; क्रूरता और निर्दयता की आग नहीं जलती । परन्तु जब पंचेन्द्रिय जीव मारा जाता है तो अन्तःकरण की स्थिति दूसरे ही प्रकार की हो जाती है । वह हलचल करने वाला विशाल प्राणी है । जब उसे मारते हैं, तो घेरते हैं, और जब घेरते हैं तो वह अपनी रक्षा करने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार जब भीतर के भावों में तीव्रता होगी, क्रूरता एवं निर्दयता की अधिकता होगी और तदनुसार भावों प्रबलता होगी, तभी उसकी हिंसा की जाएगी। एकेन्द्रिय जीव की हिंसा के परिणामों में ऐसी तीव्रता नहीं होती। ___ भगवान् ने यही बतलाने का प्रयत्न किया है कि एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा में भाव एक जैसे नहीं होते हैं। अतएव उनकी हिंसा भी एक जैसी नहीं हो सकती । ज्यों-ज्यों भावों की तीव्रता बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों हिंसा की तीव्रता में भी वृद्धि होती जाती है, एकेन्द्रिय की अपेक्षा द्वीन्द्रिय जीव की हिंसा में परिणाम अधिक उग्र होंगे। इसलिए हिंसा का परिणाम भी ज्यादा होगा। इस क्रम के अनुसार द्वीन्द्रिय से त्रीन्द्रिय में ज्यादा, त्रीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय में ज्यादा और चतुरिन्द्रिय से पंचेन्द्रियों में ज्यादा हिंसा मानी जाती है । पंचेन्द्रियों में भी औरों की अपेक्षा मनुष्य को मारने में सबसे ज्यादा हिंसा होती है । भावों की तीव्रता-मन्दता हिंसा करने वाले के भाव किस गति से तीव्र, तीव्रतर तथा तीव्रतम होते हैं, यह समझ लेना भी आवश्यक है। आप इस बात पर अवश्य ध्यान दें कि ज्यों-ज्यों विकसित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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