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________________ प्रश्नव्याकरण सूत्र की सूक्तियाँ उन्यासी ३२. आकस्मिक भय से व्याधि ( मन्दघातक, कुष्ठादि रोग) से, रोग (शीघ्र घातक हैजा आदि) से, और तो क्या, मृत्यु से भी कभी डरना नहीं चाहिए ३३. जो असंविभागी है - प्राप्त सामग्री का ठीक तरह वितरण नहीं करता है, असंग्रहरुचि है - साथियों के लिए समय पर उचित सामग्री का संग्रह कर रखने में रुचि नहीं रखता है, अप्रमाण भोजी है— मर्यादा से अधिक भोजन करने वाला पेटू है, वह अस्तेयव्रत की सम्यक् आराधना नहीं कर सकता । ३४. जो संविभागशील है - प्राप्त सामग्री का ठीक तरह वितरण करता है, संग्रह और उपग्रह में कुशल है – साथियों के लिए यथावसर भोजनादि सामग्री जुटाने में दक्ष है, वही अस्तेयव्रत की सम्यक् - आराधना कर सकता है । ३५. दूसरे की कोई भी चीज हो, आज्ञा लेकर ग्रहण करनी चाहिए । ३६. अपने को अपरिग्रह भावना से संवृत कर लोक में विचरण करना चाहिए । ३७. भले ही कोई साथ न दे, अकेले ही सद्धर्म का आचरण करना चाहिए । ३८. विनय स्वयं एक तप है और वह आभ्यंतर तप होने से श्रेष्ठ धर्म है । ३९. ब्रह्मचर्य - उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व और विनय का मूल है। ४०. एक ब्रह्मचर्य के नष्ट होने पर सहसा अन्य सब गुण नष्ट हो जाते हैं। एक ब्रह्मचर्य की आराधना कर लेने पर अन्य सब शील, तप, विनय आदि व्रत आराधित हो जाते हैं । ४१. एक ब्रह्मचर्य की साधना करने से अनेक गुण स्वयं प्राप्त ( अधीन ) हो जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001258
Book TitleSukti Triveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Canon, & Agam
File Size3 MB
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