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________________ भगवती सूत्र की सूक्तियाँ ७. हे आर्य ! आत्मा ही सामायिक ( समत्वभाव) है, और आत्मा ही सामायिक का अर्थ ( विशुद्धि ) है । ( इस प्रकार गुण गुणी में भेद नहीं, अभेद है 1 ) ८. गर्हा ( आत्मालोचन ) संयम है, अगर्हा संयम नहीं है । ९. अस्थिर बदलता है, स्थिर नहीं बदलता । अस्थिर टूट जाता है, स्थिर नहीं टूटता । १० कोई भी क्रिया किए जाने पर ही दुःख का हेतु होती है, न किए जाने पर नहीं । ११. सत्संग से धर्मश्रवण, धर्मश्रवण से तत्त्वज्ञान, तत्त्वज्ञान से विज्ञान = विशिष्ट तत्त्वबोध, विज्ञान से प्रत्याख्यान - सांसारिक पदार्थों से विरक्ति, प्रत्याख्यान से संयम, संयम से अनाश्रव = नवीन कर्म का अभाव, अनाश्रव से तप, तप से पूर्वबद्ध कर्मों का नाश, पूर्वबद्ध कर्मनाश से निष्कर्मता = सर्वथा कर्मरहित स्थिति और निष्कर्मता से सिद्धि - मुक्त स्थिति, होती है । प्राप्त १२. जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, किन्तु सदा अवस्थित रहते हैं । १३. नारक जीवों को प्रकाश नहीं, अंधकार ही रहता है । १४. जो जीव है, वह निश्चित रूप से चैतन्य है, और जो चैतन्य है, वह निश्चित रूप से जीव है । १५. समाधि ( सुख ) देने वाला समाधि पाता है । १६. जो दुःखित = कर्मबद्ध है, वही दुःख बन्धन को पाता है, जो दुःखित=बद्ध नहीं हैं, वह दु:ख = बन्धन को नहीं पाता । सडसठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001258
Book TitleSukti Triveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Canon, & Agam
File Size3 MB
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