________________
'सनिधि' राजधाट,
नई दिल्ली-१ इन दिनों में भारत में सब जगह जाकर लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि भारतीय संस्कृति को हमें प्राणवान बनाकर विश्व की सेवा के योग्य बनाना हो तो हमें अब समन्वय-नीति को स्वीकार करना ही होगा। समन्वय नीति ही आज का युगधर्म है।
आज का यगधर्म है। भारत में तीन दर्शनों की प्रधानता है। सनातनी संस्कृति के तीन दर्शनों का प्रभुत्व है (१) वैदिक अथवा श्रुति-स्मृति पुराणोक्त-दर्शन (२) जैन दर्शन और (३) बौद्ध दर्शन । इन तीनों दर्शनों ने भक्तियोग को कुछ न कुछ स्वीकार किया है। ये सब मिलकर भारतीय जीवन-दर्शन होता है। - इसी युगानुकूल नीति का स्वीकार जैन मुनि उपाध्याय अमर मुनि ने पूरे हृदय से किया है। और अभी-अभी उन्होंने इन तीनों दर्शनों में से महत्त्व के और सुन्दर सुभाषित चुनकर 'सूक्ति त्रिवेणी' तैयार की है । अमर मुनिजी ने आज तक बहुत महत्त्व का साहित्य दिया है, उसमें यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्व की वृद्धि कर रहा है । तुलनात्मक अध्ययन से दृष्टि विशाल होती है
और तत्त्व-निष्ठा दृढ़ होती है। 'सूक्ति त्रिवेणी' ग्रंथ यह काम पूरी योग्यता से सम्पन्न करेगा।
__ मैं संस्कृति उपासकों को पूरे आग्रह से प्रार्थना करूंगा कि समय-समय पर इस त्रिवेणी में डुबकी लगाकर सांस्कृतिक पुण्य का अर्जन करें।
__ श्री अमर मुनिजी से भी मैं प्रार्थना करूंगा कि इस ग्रंथ के रूप में हिन्दी विभाग को उस की भाषा सामान्यजनसुलभ बनाकर अलग ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करें । ताकि भारत की विशाल जनता भी इससे पूरा लाभ उठावे । ऐसे सुलभ हिन्दी संस्करणों से पाठकों को मूल सूक्ति त्रिवेणी की ओर जाने की स्वाभाविक प्रेरणा होगी। मैं फिर से इस युगानुकूल प्रवृत्ति का और उसके प्रवर्तकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
-काका कालेलकर ......सूक्ति त्रिवेणी के प्रकाशन पर मुझे प्रसन्नता है, यह एक सुन्दर पुस्तक है, इससे समाज को लाभ पहुँचेगा और राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा मिलेगा, इस दिशा में आपका कार्य सराहनीय है, आप मेरी ओर से बधाई स्वीकार कीजिए ।
-दौलतसिंह कोठारी अध्यक्ष-विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org