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आचार्य कुन्दकुन्द की सूक्तियां
एक सौ पचहत्तर
आत्मा जब कर्म - मल से मुक्त हो जाता है, तो वह परमात्मा बन जाता है ।
८९. आत्मा बड़ी कठिनता से जाना जाता है ।
८८.
९०. आत्मा के तीन प्रकार हैं- परमात्मा, अन्तरात्मा और बहिरात्मा । ( इनमें बहिरात्मा से अन्तरात्मा, और अन्तरात्मा से परमात्मा की ओर बढें ) ।
९१. इन्द्रियों में आसक्ति बहिरात्मा है, और अन्तरंग में आत्मानुभव रूप आत्मसंकल्प अन्तरात्मा है ।
९२. जो व्यवहार (संसार) के कार्यों में मोता ( उदासीन ) है, वह योगी स्वकार्य में जागता (सावधान) है । और जो व्यवहार के कार्यों में जागता है, वह आत्मकार्यों में सोता है ।
९३. आत्मा ही मेरा शरण है ।
९४. शील ( आचार) के विना इन्द्रियों के विषय, ज्ञान को नष्ट कर देते हैं ।
९५. चारित्र से विशुद्ध हुआ ज्ञान यदि अल्प भी है, तब भी वह महान फल देने वाला है ।
९६. शीलगुण से रहित व्यक्ति का मनुष्य जन्म पाना निरर्थक ही है ।
९७. जीवदया, दम, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, संतोष, सम्यक् दर्शन, ज्ञान और तप - यह सब शील का परिवार है । अर्थात् शील के अंग हैं ।
९८. शील ( सदाचार) मोक्ष का सोपान है ।
९९. इन्द्रियों के विषयों से विरक्त
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रहना,
शील है ।
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