________________
उत्तराध्यन की सूक्तियां
एक सौ पच्चीस
१४०. स्वाध्याय करते रहने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है।
१४१. स्वाध्याय सब भावों (विषयों), का प्रकाश करने वाला है।
१४२. वस्तुस्वरूप को यथार्थ रूप से जानने वाले जिन भगवान ने ज्ञान, दर्शन,
चारित्र और तप को मोक्ष का मार्ग बताया है।
१४३. सम्यक्त्व (सत्यदृष्टि) के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता ।
१४४. सम्यक दर्शन के अभाव में ज्ञान प्राप्त नहीं होता, ज्ञान के अभाव में
चारित्र के गुण नहीं होते, गुणों के अभाव में मोक्ष नहीं होता और मोक्ष के अभाव में निर्वाण (शाश्वत आत्मानंद) प्राप्त नहीं होता।
१४५. ज्ञान से भावों (पदार्थों) का सम्यक-बोध होता है, दर्शन से श्रद्धा होती
है। चारित्र से कर्मों का निरोध होता है और तप से आत्मा निर्मल होता है।
१४६. सामायिक की साधना से पापकारी प्रवृत्तियों का निरोध हो जाता है।
१४७. क्षमापना से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है ।
१४८. स्वाध्याय से ज्ञानावरण (ज्ञान को आच्छादन करने वाले) कर्म का क्षय
होता है।
१४९. वैयावृत्य (सेवा) से आत्मा तीर्थकर होने जैसे उत्कृष्ट पुण्य कर्म का
उपार्जन करता है।
१५०. वीतराग भाव की साधना से स्नेह (राग) के बंधन और तृष्णा के बंधन
कट जाते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org