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सर्ग चौदह
पूर्णता के पथ पर
नर जीवन की पूर्णता, नहीं मात्र गृह - क्षेत्र । मुनिपद धारण श्रेय है, उघड़ें अन्तर नेत्र । जीवन के अपराह्न में, लेकर पूर्ण विराग; उभय पक्ष साधन किए, धन्य सेट महाभाग ।
धर्मघोष मुनिराज एकदा,
चम्पापुर में आए हैं । बाहर उपवन में ठहरे,
जन दर्शन कर हर्षाए हैं । सेठ सुदर्शन जी भी पहुंचे,
वन्दन कर पूछी साता । धार्मिक जन का गुरु-दर्शन से,
हृदय हर्ष से भर आता ॥ धर्मघोष गुरु ने परिषद् में,
दिया स्वप्रवचन निर्वृति-मय । प्रवचन क्या था अमृत बरसा,
सबका गद्गद् हुआ हृदय ।।
धर्म की पूँजी कमा ले,
कमाले जीवा, जीवन बन जायेगा!
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