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________________ शूली से सिंहासन रक्तपात करना पशुता है, ___ मात्र भीरुता है मन की । सज्जनता से अरि को वश, ____करना है शोभा सज्जन की ॥ भौतिक बल अन्यत्र कहीं भी, __नहीं शक्ति से झुकता है । आध्यात्मिक बल के ही सम्मुख, आकर आखिर थकता है ॥ राजा, तो क्या अखिल विश्व भी, नतमस्तक हो जाता है । आध्यात्मिकता का जब सच्चा, भाव हृदय में आता है । गर्ज रहा है अब असत्य, पर, अन्त सत्य ही चमकेगा । तम का पर्दा फाड़ पूर्ण, आलोक प्रभाकर दमकेगा ॥ भौतिक बल ही प्रबल शत्रु है, बसा तुम्हारे अन्तर में । हो सकते हो इसे जीत कर, विजयी तुम संसृति - भर में ॥ बचो, क्रोध, कादर्य, अनय, दुःसाहस की दुर्बलता से । बनो समर्थ अजेय अहिंसक, दृढ़ अध्यात्म - सबलता से ॥ मुझ पर है यदि प्रेम अटल, तो मेरा ही पथ अपनाओ । १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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