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शरीर को निष्क्रिय करना, शिथिल करना कायोत्सर्ग नहीं है। देह से अतीत चैतन्य-स्वरूप का अनुभव होना कायोत्सर्ग है। यह साधना की उत्कृष्ट अवस्था है।
विवाह प्रज्ञप्ति सूत्र के शतक 25, उद्देशक 7 में व्युत्सर्ग का निरूपण करते हुए कहा है-(1) गण (समुदाय) (2) शरीर (3) उपधि (साधना-समाग्री) और (4) भक्तपान (इन्द्रियों के भोग) का त्याग करना द्रव्य व्युत्सर्ग है। संसार में भ्रमण कराने वाले क्रोध, मान, माया और लोभ-इन चार कषायों का त्याग करना; नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-इन चार गतियों एवं ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों के बन्धन करने वाले कारणों का त्याग करना भाव व्युत्सर्ग है। व्युत्सर्ग के इन भेदों में शिथिलीकरण का कोई स्थान नहीं है। तात्पर्य यह है कि कायोत्सर्ग सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चारित्र व तप के अराधक साधक के ही होता है (जो सम्यग्दृष्टि नहीं है, उसके कायोत्सर्ग नहीं होता है)।
___करोड़ों व्यक्ति प्रतिदिन अपने कार्यालय में भूमि या कुर्सी पर घण्टों तक स्थिर आसन से बैठे, मौन रहे, एकाग्र चित्त से अपना कार्य करते हैं। मधुमेह का रोगी मिठाई का त्याग करता है, श्रमिक घण्टों तक धूप की ताप आदि का कष्ट सहन करते हैं, परन्तु इससे वे व्यक्ति ध्यान व कायोत्सर्ग साधक नहीं हो जाते हैं, क्योंकि उनका स्थिर आसन से बैठना, मौन रहना व चित्त की एकाग्रता, मिठाई का त्याग, ताप सहने का उद्देश्य भोग सामग्री जुटाना व भोगों की पूर्ति करना है, शरीर, संसार के भोगों का त्याग करना व इनसे अतीत होना नहीं है, अतः उनकी शारीरिक स्थिरता, वाचिक मौन एवं मानसिक एकाग्रता का त्याग व तप, ध्यान व कायोत्सर्ग साधना में कहीं स्थान नहीं है। इसी प्रकार शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य व सुख-भोग के लिए किए गए पद्मासन, शवासन (शिथिलीकरण), रेचक-पूरक-कुम्भक प्राणायाम, आदि भी ध्यान, कायोत्सर्ग व योग साधना नहीं हैं। क्योंकि शारीरिक व मानसिक स्वस्थता व सुख-भोग के लिए तो सभी भोगी मनुष्य सदा ही प्रयत्न करते रहते हैं, इससे वे योगी नहीं हो जाते हैं। कारण कि जहाँ भोग है वहाँ योग नहीं और जहाँ वास्तविक योग है वहाँ भोग नहीं हो सकते। आशय यह है कि जिस शिथिलीकरण, आसन, प्राणायाम, एकाग्रता का उद्देश्य विषय-सुखों का त्याग करना नहीं है वे भोग के ही हेतु होते हैं, अतः भोग हैं। भोग को योग मानना भ्रान्ति है, धोखा है। विवेकपूर्वक शरीर, संसार, कर्म और कषाय का व्युत्सर्ग ही कायोत्सर्ग, योग समाधि है।
कायोत्सर्ग और शिथिलीकरण 117
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