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________________ __ धर्म ध्यान करने वाले ध्याताओं में से कुछ मन का निरोध कर फिर वचन और शरीर या श्वासोच्छ्वास का निरोध करते हैं और कुछ ध्याता शरीर, वचन का निरोध कर मन का निरोध कर पाते हैं। आवश्यक सूत्र में 'ठाणेणं माणेणं झाणेणं....' इन पदों में शरीर-मन के क्रमशः निरोध का क्रम प्रतिपादित है। व्याख्या : मोक्ष प्राप्ति के पूर्व अन्तर्मुहुर्त तक रहने वाली शैलेषी अवस्था में केवली के शुक्ल ध्यान में मनोयोग आदि निग्रह होता है। वह क्रम से मनोयोग, वचनयोग और काययोग के निरोध के रूप में होता है। शेष धर्म ध्यान की अवस्थाओं में साधक जिस प्रकार भी योग समाधि को प्राप्त हो उसी क्रम से निग्रह करता है। • अब ध्यातव्य द्वार की प्ररूपणा की जाती है। ध्यातव्य का निरूपण करते समय आज्ञा आदि विचयों का नामोल्लेख करते हुए ग्रन्थकार कहते हैं : आणा विजए अवाए, विवागे संठाणओ अ नायव्वा। एए चत्तारि पया, झायव्वा धम्मझाणस्स ।। 45।। धर्म ध्यान के ध्यातव्य ये चार प्रकार के जानने चाहिये:- 1. आज्ञा विचय, 2. अपाय विचय, 3. विपाक विचय तथा 4. संस्थान विचय। __यह गाथा कई मुद्रित ग्रन्थों में नहीं है और किसी ग्रन्थ में इस गाथा को अन्यकर्तृक मानकर इस गाथा की संख्या की गणना नहीं की गई है। अभिधान राजेन्द्र कोश में यह गाथा उपलब्ध है तथा हरिभद्र की संस्कृत टीका में इस गाथा का प्रसङ्ग तथा व्याख्या उपलब्ध होने से इसे अन्यकर्तृक मानना या इस गाथा को स्वीकार न करना उचित नहीं है। इस गाथा के जुड़ने से ध्यानशतक की कुल गाथा संख्या 107 हो जाती है। व्याख्या: धर्म ध्यान के इन चारों विचयों का विस्तार से निरूपण अग्रिम गाथाओं में किया जा रहा है। धर्म ध्यान का ध्यातव्य आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान के भेद से चार प्रकार का है। .आज्ञा विचय का विवेचन किया जा रहा है:सुनिउणमणाइणिहणं भूयहियं भूयभावणमह (ण) ग्य। अमियमजियं महत्थं महाणुभावं महाविसयं ।। 46 ।। झाइज्जा निरवज्जं जिणाणमाणं जगप्पईवाणं। अणिउणजणदुण्णेयं नय-भंग-पमाण-गमगहणं ।। 47 ।। 88 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001216
Book TitleDhyanashatak
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorKanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Dhyan
File Size7 MB
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