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________________ गा. सं. पृ. सं. 103 ___70 103 71-77 104-106 78-79 80-81 107 109 111 82 83 111 विवरण धर्म ध्यानी के ज्ञापक लिङ्ग शुक्ल ध्यान के आलम्बन ध्यान की प्रक्रिया : मन-वचन-काय निरोध : शैलेशी केवली शुक्ल ध्यान के भेदः (1) पृथकत्व वितर्क विचार (2) एकत्व वितर्क अविचार (3) सूक्ष्मक्रिया अनिवृत्ति (4) व्युच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाति शुक्ल ध्यान के भेदों में योग-निरोध की स्थिति छद्मस्थ और केवली के ध्यान की विशेषता शुक्ल ध्यान भावित ध्याता की चार अनुप्रेक्षाएँ शुक्ल ध्यान और लेश्या शुक्ल ध्यान के लिङ्गः 1. अव्यथा 2. असम्मोह 3. विवेक 4. व्युत्सर्ग धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान के फल की तुलना ध्यान से कर्मक्षय की प्रक्रिया ध्यान का इहलौकिक फल ध्यान का उपसंहार तथा ग्रन्थकर्ता नामनिर्देश सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 112 113 84 85-87 88-89 90-93 114 117 94-95 96-97 119 120 120-122 98-103 104-105 106-107 123 123 125 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001216
Book TitleDhyanashatak
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorKanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Dhyan
File Size7 MB
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