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प्रकाशकीय
स्व. आगमप्रभाकर पू. मुनिराज पुण्यविजयजी म.सा. द्वारा संपादित श्री जिनदास गणि महत्तर विरचित चूर्णि सह देववाचक कृत 'नंदीसूत्र' का पुनःमुद्रण प्रकाशित करते हुए हमें आनंद अनुभव हो रहा है। करीब दस वर्ष से ग्रंथ की सभी नकलें समाप्त हो चुकी थीं। प.पू.आचार्य भगवंत श्रीमद् मित्रानंदसूरीश्वरजीकी प्रेरणा से स्थापित प.पू.पं. पद्मविजयजी गणिवर जैन ग्रंथमाला ट्रस्ट, अहमदाबाद की आर्थिक सहाय से यह पुनःमुद्रण का कार्य संभवित हो पाया है। प.पू.आचार्यदेवेश श्रीमद्विजयनरचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. तथा प.पू.आचार्यश्री विजय-मित्रानंदसूरीश्वरजी के शिष्यरत्न पू. गणिवरश्री भव्यदर्शनविजयजी म.सा. एवं संस्था के प्रकाशन कार्य में अत्यंत उत्साहपूर्वक प्रेरणा देनेवाले पू.मुनिश्री धर्मतिलकविजयजी म.सा. के हम अत्यंत आभारी हैं । आर्थिक सहाय दाता ट्रस्ट के प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं।
पुनर्मुद्रण का कार्य सुचारु ढंग से पेश करने के लिए माणिभद्र प्रिन्टर्स के श्री के. भीखालाल भावसार को भी धन्यवाद ।
प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद वैशाख शुक्ल पूर्णिमा, वि.सं. २०६०
रमणीक शाह मानद् मंत्री -
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