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महानिसीह-सुय-खंधं
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सूल-विस-अहि-विसुइया-पाणिय-सत्थग्गि-संभमेहिं च । देहंतर-संकमणं करेइ जीवो मुहुत्तेणं ॥४०५।। जाव आउ सावसेसं, जाव य थेवो वि अत्थि ववसाओ। ताव करे अप्प-हियं. मा तप्पिहहा पणो पच्छा ॥४०६॥ सुर-धणु-विजू-खण-दिट्ठ-नट्ठ-संझाणुराग-सिमिण समं । देहं इंति तु पणइ-आमयभंडं व जल-भरियं ॥४०७॥ इय जाव ण चुक्कसि एरिसस्स खणभंगुरस्स देहस्स । उग्गं कहें घोरं चरसु तवं नत्थि परिवाडि ॥४०८।। गोयमो त्ति वास-सहस्सं पि जई काऊणं संजमं सुविउलं पि। अंते किलिट्ठ-भावो न विसुज्झइ कंडरिओ व्व ॥४०९।। अप्पेण वि कालेणं केइ जहा गहिय-सील-सामण्णा। साहिति नियय-कज्जं पोंडरिय-महा-रिसि व्व जहा ॥४१०॥ न य संसारम्मि सुहं जाइ-जरा-मरण-दुक्ख-गहियस्स। जीवस्स अत्थि जम्हा, तम्हा मोक्खो उवाए उ ॥ सव्व पयारेहिं सव्वहा सव्व-भाव-भावंतरेहिं णं गोयमा ! ॥४१शात्ति बेमि।।
महानिसीह-सुयक्खंधस्स गीयत्थ-विहारनाम छट्ठमज्झयणं समत्तं
• अहिविसविला . सं. रवं. । २ भवं न जे.।
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