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________________ ठाणंगसुत्ते चउत्थे अज्झयणे चउट्ठाणे [सू० २८९ - चत्तारि मग्गा पन्नत्ता, तंजहा—खेमे णाममेगे खेमरूवे, खेमे णाममेगे अखेमरूवे हे [४], ६। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तंजहा—खेमे नाममेगे खेमरूवे ह [४], ७। चत्तारि संबुक्का पन्नत्ता, तंजहा–वामे नाममेगे वामावत्ते, वामे नाममेगे ५ दाहिणावत्ते, दाहिणे नाममेगे वामावत्ते, दाहिणे नौममेगे दाहिणावत्ते ८। एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता, तंजहा–वामे नाममेगे वामावत्ते ह [४], ९। ___चत्तारि धूमसिहाओ पन्नत्ताओ, तंजहा—वामा नाममेगा वामावत्ता ह [४], १०॥ १० एवामेव चत्तारि इत्थीओ पन्नत्ताओ, तंजहा—वामा णाममेगा वामावत्ता हूं [४], ११। चत्तारि अग्गिसिहाओ पन्नत्ताओ, तंजहावामा णाममेगा वामावत्ता हूँ [= ४], १२। एवामेव चत्तारि इत्थीओ पन्नत्ताओ, तंजहावामा णाममेगा वामावत्ता १५ ह [४], १३। चत्तारि वायमंडलिया पन्नत्ता, तंजहा–बामा णाममेगा वामावत्ता है [४], १४। एवामेव चैतारि इत्थीओ पन्नत्ताओ, तंजहा–वामा णाममेगा वामावत्ता है [= ४], १५। चत्तारि वणसंडा पन्नत्ता, तंजहा–वामे नाममेगे वामावत्ते ह[ =४], १६।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता, तंजहा—वामे णाममेगे वामावत्ते है [४], १७। १. अखेमे नाम एगे खेमरूवे, अखेमे [नाम एगे अ] खेमरूवे टू [= ४] क० । अत्र शेषौ द्वौ भगौ ह [४] इत्यनेन सूचितौ क. पाठानुसारेण ज्ञेयौ ॥ २. “शम्बूकाः शङ्खाः, वामा वामपार्श्वव्यवस्थितत्वात् प्रतिकूलगुणत्वाद्वा".-अटी० ॥ ३. नामेगे जे०॥ ४, ५. ह४] इत्यनेन अवशिष्टं भङ्गत्रयं शम्बूकवज्ज्ञेयम् ॥ ६. चत्तारिस्थीओ क० विना ॥ ७, ८, १०, ११, १३. 'वामा णाममेगा वामावत्ता १, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता २, दाहिणा नाममेगा वामावत्ता ३, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता ४, इति भङ्गचतुष्टयं ह [४] इत्यनेन सुच्यते ॥ ९. चत्तारित्थिताओ जे० पा० ला० । चत्तारित्थीओ मु०॥ १२. चत्तारिस्थियाओ जे० पा० ला। चत्तारित्थीमो मु०॥ १४, १५, दृश्यतां पृ० १६ टि. ४,५॥ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001147
Book TitleThanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1985
Total Pages886
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, agam_sthanang, & agam_samvayang
File Size15 MB
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