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शाकटायनव्याकरण उपर अमोघा वृत्तिनी रचना विक्रमसंवत ८७१ थी ९२४ वच्चे कोईक समये थयेली छे एवो विद्वानोनो निश्चित मत अमे पूर्वे जणावी गया छीए. स्त्रीनिर्वाण-केवलिभुक्तिप्रकरणना कर्ता अने व्याकरणकार शाकटायन जो एक ज छे तो व्याकरणकार शाकटायननो समय ज स्त्रीनिर्वाण-केवलिभुक्तिप्रकरणकार शाकटायननो समय समजवो जोईए. आचारांग तथा सूत्रकृतांगना टीकाकार शीलाचार्यनो समय नक्की करती वखते शाकटायनना समयने पण लक्षमा लेवो जोईए.
स्त्रीनिर्वाण-केवलिभुक्तिप्रकरणनी टीकामां अनेक स्थले बौद्धाचार्य धर्मकीर्तिना न्यायबिन्दु आदि ग्रंथोनी छाया छे. धर्मकीर्तिना प्रमाणवातिकमांथी एक कारिका पण उद्धृत करेली छे. एटले आ ग्रंथनी रचना धर्मकीर्तिना ग्रंथो पछी छे तेमज सूत्रकृतांगनी शीलाचार्यकृत टीकानी पूर्वे थयेली ज छे ए वात बीलकुल स्पष्ट छे. धर्मकीर्तिनो समय विद्वानो सातमी शताब्दी आसपास गणे छे.
ग्रंथकार-शाकटायन महावैयाकरण तरीके प्रसिद्ध छे ज. तेमना व्याकरणनी अद्भुत छाया हेमचन्द्राचार्ये रचेला सिद्धहेम शब्दानुशासन उपर पडेली छे, ए विषे तुलनात्मक रीते घणुं लखायेलुं छे. ए उपरांत शाकटायन दर्शनशास्त्रोना पण महाविद्वान छे ए वात आ ग्रंथ वाचतां स्पष्ट जणाई आवे छे. संभव छे के स्त्रीनिर्वाण-केवलिभुक्तिनी चर्चानी आवी दार्शनिक शैलीथी रजुआत तेमणे प्रारंभी होय के जेने पाछळना श्वेतांबर आचार्यो अनुसर्या होय. आ ग्रंथमा आवतां अनेकानेक आगमादि शास्त्रोना उद्धरणो जोतां शाकटायन, आगमादि धर्मशास्त्रोन ज्ञान पण विशाळ अने अगाध हतुं ए स्पष्ट जणाई आवे छे.
"शब्दानुशासनं शास्त्रमिदं महाश्रमणसंघाधिपतिर्भगवानाचार्यः शाकटायनः प्रारभते।" अमोघावृत्तिना प्रारंभमां आवता आवा निर्देशथी सिद्ध थाय छे के शाकटायन विशाळ श्रमणसंघना नायक पण हता. आथी ज मलयगिरिआचार्ये शाकटायन माटे यापनीययतिग्रामाग्रणी तरीके करेलो उल्लेख तथा श्रुतकेवलिदेशीय तरीकेनो शाकटायनव्याकरणना पादोनी समाप्ति आदिमां मळतो निर्देश पण यथार्थ छ. शाकटायनव्याकरणनी चिन्तामणि टीकाना रचयिता यक्षवर्मा टीकाना प्रारंभमां
स्वस्ति श्रीसकलज्ञानसाम्राज्यपदमाप्तवान् । महाश्रमणसंघाधिपतिर्यः शाकटायन :॥३॥
ए रीते शाकटायनने वर्णवे छे. शाकटायन, विविध विषयो- अगाध ज्ञान जोतां आवं वर्णन जोवा मळे ए स्वाभाविक छे.
पद्धति-ग्रंथकारे मिश्र पद्धतिथी आ ग्रंथ रचेलो छ जेमां मूळ अने टीकार्नु मिश्रण होय छे-मिश्रण करवामां आवे तो ज जेमा घणीवार अर्थ पण समजाय छे. एक ज ग्रंथमां केटलोक भाग मूळ कारिका रूपे छे अने केटलोक भाग टीका रूपे छे. ए युगमां आ पद्धति प्रचलित हती. जुओ दिङ्नागनो प्रमाणसमुच्चय तथा धर्मकीर्तिना प्रमाणवार्तिकनो स्वार्थानुमानपरिच्छेद वगेरे. मिश्रक टीकानी पद्धतिथी रचायेला ग्रंथोमां मूळ अने टीका मळीने ग्रंथ बने छे.
विशिष्टता-आ ग्रंथमा घणी घणी विशिष्ट वातो जोवा मले छे. पृ० १९ पं. २२-२३मां ओघ, अणु अने औपग्रहिक एम त्रण प्रकारनी उपधिनो उल्लेख छे. औधिक अने औपग्रहिक बे प्रकारनी उपधिनो उल्लेख श्वेतांबर ग्रंथोमां घणे स्थले आवे छे. 'अणु' प्रकारनी उपधि ए यापनीय संघनी विशिष्टता लागे छे.
आमां जे आगमपाठो उद्धत करवामां आवेला छे तेमां पण विशिष्टता देखाई आवे छे. श्वेतांबर परंपरामां जे आगमोनी पाठ परंपरा प्रचलित छे तेनाथी थोड़ो पाठभेद केटले य स्थळे छ अने तेनो अमे ग्रंथना टिप्पणमा (जुओ पृ० १९ टि० वगेरे) अथवा परिशिष्टोने अंते अवतरणोनी अकारादिक्रमथी ज्यां सूची आपेली छे त्यां यथासंभव निर्देश करेलो छे. श्वेतांबरोनी जेम यापनीयो आगमादिने जरूर मान्य राखता हता, छतां तेमना पासे आगमादिनी केटलीक विशिष्ट पाठपरंपरा हती ए वात जरूर जणाय छे. ____ आ बंने प्रकरणोनुं अवगाहन करतां आवी अनेक विशिष्टताओ जोवा मळशे.
महत्ता-आ ग्रंथनो केटलो बधो प्रचार हशे ए वात एटला उपरथी पण समजी शकाय तेम छे के ग्रंथकार यापनीय होवा छतां ते पछीना अनेक महान् श्वेतांबर ग्रंथकारोए स्त्रीनिर्वाणप्रकरण तथा केवलिभुक्तिप्रकरणनो छुटथी उपयोग पोताना
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