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________________ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः आचार्यमहाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरजीसद्गुरुदेवेभ्यो नम:। आचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरजीसद्गुरुदेवेभ्यो नम:। सद्गुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयजीपादपद्मेभ्यो नम: । प्रस्तावना परम कृपाळु परमात्मा तथा परम उपकारी श्री सद्गुरुदेवनी कृपाथी शाकटायनाचार्य विरचित स्वोपज्ञवृत्तियुक्त स्त्रीनिर्वाणप्रकरण तथा केवलिभुक्तिप्रकरण आ बे प्रकरणोनो बनेलो आ ग्रंथ प्रकाशित थई रह्यो छे ए अमारे माटे घणो आनंदनो विषय छे. मारी संशोधन प्रवृत्तिना एक महान् प्रेरक, उपबहक अने विविध रीते सहायक, अनेकानेक ज्ञानभंडारोना महान् उद्धारक अने विविध शास्त्रोना आजीवन महान् संशोधक पुण्यनामधेय आगमप्रभाकर स्व० मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजे खंभातना श्री शान्तिनाथजी ज्ञानभंडारमा विद्यमान एक मात्र अने कंईक खंडित आ सटीक ग्रंथनी ताडपत्र लिखित प्रतिने आधारे आ ग्रंथन संशोधन-संपादन कार्य केटलांक वर्षों पूर्वे मने सोंपेलं हतुं. देव-गुरु कृपाए यथासंभव संपादन करीने आ ग्रंथ प्रेसमेटर तैयार करीने तेओश्रीनी सेवामां में मोकली आप्यु हतुं. परन्तु तेओश्रीनी तीव्र ईच्छा छतां अनेक कारणोने लीधे तेनुं मुद्रण तेमनी हयातीमां थई शक्युं नहि. तेथी आजे आ ग्रंथ मुद्रित थईने प्रकाशित थई रह्यो छे ए वातनो जेम अमने हर्ष छ तेम आ कार्यना मूलभूत प्रेरक आने जोवा रही शक्या नथी ए वातनुं अमने दुःख पण छे. छतां गमे तेम तो ये एमनी भावना पूर्ण करी शकाई छे ए वातथी अमने आनंद छे. विषय : 'स्त्रीओ मोक्षमां जई शके छे तेमज केवलज्ञानी जरूर जणाय त्यारे कवलाहार ले छे' ए आ ग्रंथनो विषय छे. जैनोमां श्वेतांबर जैनो आगम तथा अनुमान प्रमाणथी आ बंने वातो स्वीकारे छे. परंतु दिगंबर जैनो आ बंने वातोनो विरोध करे छे अने ते साहजिक छे. कारणके दिगंबरोए ज्यारथी 'वस्त्र-पात्रनो एकान्ते अभाव होय तो ज पांचमुं अपरिग्रह महाव्रत होई शके' आ वातनो पुरस्कार शरू कर्यो त्यारथी स्त्रीओने पांचमा महाव्रतनो सर्वथा निषेध करवो ज पडे ए परिस्थिति तेमना पक्षे निर्माण थई. केमके स्त्रीओने वस्त्र विना चाली शके ज नहि अने वस्त्र होय तो पांच, महाव्रत ज उडी जाय. पांच महाव्रत न होय तो सर्वविरति चारित्र पण स्त्रीओने न ज होई शके. अने सर्वविरति चारित्र न होय तेथी मोक्ष पण स्त्रीओने न ज होई शके. एटले जे आगमादि शास्त्रोमां साधु-साध्वीओने वस्त्रादि उपधिनुं विधान होय तथा स्त्रीनिर्वाणनो उल्लेख होय ते शास्त्रोने ज 'मूल शास्त्रो लुप्त थई गयां छे' एम कहीने उडावी देवां अथवा प्रमाणभूत न मानवां अने पोते मानेलां प्राचीन शास्त्रोमां पण ज्यां स्त्रीनिर्वाणनो उल्लेख आवतो होय त्यां स्त्रीनिर्वाणनो पाठ ज 'उडावी देवो अथवा स्त्रीनिर्वाणनो अर्थ ज बदली नाखवो आ ज एमने माटे मार्ग रहे ए साहजिक छे. ते ज प्रमाणे भिक्षा-पात्रनो एकान्त अभाव मानवाने लीधे, तीर्थंकरो माटे कोई पण प्रसंगे पात्रमा आहार बीजा कोई पण लावी शके नहि अने तीर्थंकरो केवली थया पछी भिक्षा माटे पोते जाय ए उचित लागे नहि एवा गमे ते कोई पण कारणसर केवलिभुक्तिनो पण एकान्त निषेध आवी पडयो. १. दिगंबरोमां अत्यंत पूज्य गणाता षड्खंडागम-धवल ग्रंथनी प्राचीनतम हस्तलिखित प्रतिमां मूळनो स्त्रीनिर्वाण संबंधी पाठ केवी व्यवस्थित रीते उडावी देवामां आव्यो छे ए माटे जुओ-श्री जैन सत्यप्रकाश, वर्ष १५ अंक ९ ता० १५-६-५० क्रमांक १७७ना पृ० १७८-१८५मां अमारो लेख 'दिगंबर जैनो अने संजद शब्द' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001144
Book TitleStree Nirvan Kevalibhukti Prakarane Tika
Original Sutra AuthorShaktayanacharya
AuthorJambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1974
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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