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अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श
गाथाएँ क्वचित् पाठभेद के साथ मिलती हैं- सम्भवत: उन्होंने ये गाथायें यापनीयों के माथुरी वाचना के आगमों से ही ली होगी । ___एक ही समय में आर्य स्कंदिल द्वारा मथुरा में और नागार्जुन द्वारा वल्लभी में वाचना किये जाने की एक सम्भावना यह भी हो सकती है कि दोनों में किन्हीं. बातों को लेकर मतभेद थे। सम्भव है कि इन मतभेदों में वस्त्र-पात्र आदि सम्बन्धी प्रश्न भी रहे हों । पं.कैलाशचन्द्रजी ने जैन साहित्य का इतिहास- पूर्व पीठिका (पृ.५००) में माथुरी वाचना की समकालीन वल्लभी वाचना के प्रमुख के रूप में देवर्धिगणि का उल्लेख किया हैं, यह उनकी भ्रान्ति है । वास्तविकता तो यह है कि माथुरी वाचना का नेतृत्व आर्य स्कंदिल और वल्लभी की प्रथम वाचना का नेतृत्व आर्य नागार्जुन कर रहे थे और ये दोनों समकालिक थे, यह बात हम नन्दीसूत्र के प्रमाण से पूर्व में ही कह चुके हैं। यह स्पष्ट है कि आर्य स्कंदिल और नागार्जुन की वाचना में मतभेद था ।
पं.कैलाशचन्द्रजी ने यह प्रश्न उठाया हैं कि यदि वल्लभी वाचना नागार्जुन की थी तो देवर्धि ने वल्लभी में क्या किया ? साथ ही उन्होंने यह भी कल्पना कर ली कि वादिवेतालशान्तिसूरि वल्लभी की वाचना में नागार्जुनीयों का पक्ष उपस्थित करने वाले आचार्य थे । हमारा यह दुर्भाग्य है कि दिगम्बर विद्वानों ने श्वेताम्बर साहित्य का समय एवं निष्पक्ष अध्ययन किये बिना मात्र यत्र-तत्र उद्धृत या अंशत: पठित अंशों के आधार पर अनेक भ्रान्तियाँ खड़ी कर दी। इसके प्रमाण के रूप में उनके द्वारा उद्धृत मूल गाथा में ऐसा कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है, कि शान्तिसूरि वल्लभी वाचना के समकालिक थे । यदि हम आगमिक व्याख्याओं को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि अनेक वर्षों तक नागार्जुनीय और देवर्धि की वाचनायें साथ-साथ चलती रहीं हैं, क्योंकि इनके पाठान्तरों का उल्लेख मूल ग्रन्थों में कम और टीकाओं में अधिक हुआ है।
पंचम वाचना- वी.नि. के ९८० वर्ष पश्चात् ई.सन्. की पाँचवी शती के उत्तरार्द्ध में आर्य स्कंदिल की माथुरी वाचना और आर्य नागार्जुन की वल्लभी वाचना के लगभग १५० वर्ष पश्चात् देवर्धिगणिक्षमाश्रमण की अध्यक्षता में पुन: वल्लभी में एक वाचना हुई । इस वाचना में मुख्यत: आगमों को पुस्तकारूढ़ करने का कार्य किया गया । ऐसा लगता है कि इस वाचना में माथुरी और नागार्जुनीय दोनों वाचनाओं को समन्वित किया गया है और जहाँ मतभेद परिलक्षित हुआ वहाँ “नागार्जुनीयास्तु पठन्ति" ऐसा लिखकर नागार्जुनीय पाठ को भी सम्मिलित किया गया ।
प्रत्येक वाचना के सन्दर्भ में प्राय: यह कहा जाता है कि मध्यदेश में द्वादशवर्षीय दुष्काल के कारण श्रमणसंघ समुद्रतटीय प्रदेशों की ओर चला गया और वृद्ध मुनि, जो इस अकाल में लम्बी यात्रा न कर सके कालगत हो गये । सुकाल होने पर जब मुनिसंघ लौटकर आया तो उसने यह पाया कि इनके श्रुतज्ञान में विस्मृति और विसंगति आ गयी है। प्रत्येक वाचना से पूर्व अकाल की यह कहानी मुझे बुद्धिगम्य नहीं लगती है। मेरी दृष्टि में प्रथम वाचना में श्रमण संघ के विशृंखलित होने का प्रमुख कारण अकाल की अपेक्षा मगध राज्य में युद्ध से उत्पन्न अशांति और अराजकता
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