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अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श
७.ऋषिभाषित ८.जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ७.जीवाभिगम
८.प्रज्ञापना ९.द्वीपसागरप्रज्ञप्ति १०.चन्द्रप्रज्ञप्ति
९.महाप्रज्ञापना
१०.प्रमादाप्रमाद ११.क्षुल्लिकाविमान- १२.महल्लिकाविमान- ११.नन्दी
१२.अनुयोगद्वार प्रविभक्ति प्रविभक्ति १३.देवेन्द्रस्तव
१४.तन्दुलवैचारिक १३.अंगचूलिका १४.वग्गचूलिका १५.चन्द्रवेध्यक
१६.सूर्यप्रज्ञप्ति १५.विवाहचूलिका १६.अरुणोपपात १७.पौरुषीमंडल १८.मण्डलप्रवेश १७.वरुणोपपात १८.गरुडोपपात १९.विद्याचरणविनिश्चय २०.गणिविद्या १९.धरणोपपात २०.वैश्रमणोपपात २१.ध्यानविभक्ति २२.मरणविभक्ति २१.वेलन्धरोपपात २२.देवेन्द्रोपपात २३.आत्मविशोधि २४.वीतरागश्रुत २३.उत्थानश्रुत २४.समुत्थानश्रुत २५.संलेखणाश्रुत २६.विहारकल्प २५.नागपरिज्ञापनिका २६.निरयावलिका २७.चरणविधि
२८.आतुरप्रत्याख्यान २७.कल्पिका २८.कल्पावतंसिका २९.महाप्रत्याख्यान २९.पुष्पिता ३०.पुष्पचूलिका ३१.वृष्णिदशा
इस प्रकार नन्दीसूत्र में १२ अंग, ६ आवश्यक, ३१ कालिक एवं २९ उत्कालिक सहित ७८ आगमों का उल्लेख मिलता है । ज्ञातव्य है कि आज इनमें से अनेक ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं। यापनीय और दिगम्बर परम्परा में आगमों का वर्गीकरण :
यापनीय और दिगम्बर परम्पराओं में जैन आगम साहित्य के वर्गीकरण की जो शैली मान्य रही है, वह भी बहुत कुछ नन्दीसूत्र की शैली के ही अनुरूप है । उन्होनें उसे उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र से ग्रहण किया है। उसमें आगमों को अंग और अंगबाह्य ऐसे दो वर्गों में विभाजित किया गया है। इनमें अंगो की बारह संख्या का स्पष्ट उल्लेख तो मिलता हैं, किन्तु अंगबाह्य की संख्या का स्पष्ट निर्देश नहीं हैं । मात्र यह कहा गया है अंगबाह्य अनेक प्रकार के हैं। किन्तु अपने तत्त्वार्थभाष्य (१/२०) में आचार्य उमास्वाति ने अंग-बाह्य के अन्तर्गत सर्वप्रथम सामायिक आदि छह आवश्यकों का उल्लेख किया हैं उसके बाद दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, दशा, कल्प, व्यवहार, निशीथ और ऋषिभाषित के नाम देकर अन्त में आदि शब्द से अन्य ग्रन्थों का ग्रहण किया हैं। किन्तु अंगबाह्य में स्पष्ट नाम तो उन्होंने केवल बारह ही दिये हैं। इसमें कल्प-व्यवहार का एकीकरण किया गया है । एक अन्य सूचना से यह भी ज्ञात होता हैं कि तत्त्वार्थभाष्य में उपांग संज्ञा का निर्देश है। हो सकता है कि पहले १२ अंगो के समान यही १२ उपांग माने जाते हों । तत्त्वार्थसूत्र के टीकाकार पूज्यपाद, अकलंक, विद्यानन्दी आदि दिगम्बर आचार्यों ने अंगबाह्य में न केवल उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि ग्रन्थों का उल्लेख किया है, अपितु कालिक एवं उत्कालिक ऐसे वर्गों का भी नाम निर्देश (१/२०) किया हैं । हरिवंशपुराण एवं धवलाटीका में आगमों का जो वर्गीकरण उपलब्ध
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