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चित्राणि । ६. चतुर्दशरज्ज्वात्मकस्य लोकस्य स्वरूपम्
जैन दर्शनानुसारे विश्वदर्शन-१४ राजलोक- अन्त लोकाग्रभाग
अनंत - अनंत मिद भगवंत । सिद्धशिला -
'', अनुत्ता -M E -नव ग्रेवयक अ
१२ वैमानिक
देवलोक
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लो
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नव लोकान्तिक
...V ३ किल्विषिक
अनंत
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-अलाकाकाशाचा अचा यानिष चक्र
पका
वाणव्यनर व्यंतर
५० भवनात
मर, पर्वत
अमट्य द्वीप समद्रा लप्रभाMAN
-नरक
शला
५. परमाधामी ७ तिर्छा १० नियंग जंभक लोक घनाधिवलय
घनवानवलय तनवातवलय
शर्करा प्रभा
स
नरक
वालुका प्रमा
-- नरक ३
पंक प्रभा
धूम प्रभा
नरक५
तमः प्रभा
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अलोक
त्रसनाडी
अलोक
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