________________
तदुलवैचारिकप्रकीर्णक (१२५) सड़न, गलन, विनाश, विध्वंसन, दुःखकर एवं मरण धर्मा सड़े
हुए काष्ठ के समान इस शरीर की कौन अभिलाषा (रखेगा) ? (१२६) (यह शरीर) कौओं, कुत्तों, कीड़े मकोड़ों, मछलियों और श्मशान
में रहने वाले (गिद्ध आदि प्राणियों) का भोज्य तथा व्याधियों से ग्रस्त
है, ऐसे शरीर में कौन राग (करेगा) ? (१२७) (यह शरीर) अपवित्र, विष्ठा से पूरित तथा मांस और हड्डियों
का घर है। इससे मल स्राव होता रहता है। माता पिता के रजबीर्य से उत्पन्न, नौ छिद्रों से युक्त (इस शरीर को) अशाश्वत जानो। (विशेष-पति या पत्नी जीवन में आते हैं, अतः वे आगन्तुक हैं और उनके द्वारा गर्भ संस्थापित है, अतः वह गर्भ से निर्मित शरीर
आगन्तुक संस्थापित कहा गया है।) (१२८) (तुम) तिलक से युक्त, विशेष रूप से रक्ताभ ओठों वाली युवती
के मुख को विकार भाव से एवं कटाक्ष सहित चंचल नेत्रों से देखते हो।
(१२९) (तुम उनके) बाह्य रूप को देखते हो किन्तु भीतर स्थित दुर्गन्धित
मल को नहीं देखते हो । मोह से ग्रसित होकर नाचते हो और कपाल
के अपवित्र रस (लार-श्लेष्मादि) को (चुम्बन आदि से) पीते हो। (१३०) कपाल से उत्पन्न रस (लार और श्लेष्म), जिसको (तुम स्वयं)
थूकते हो (और) घृणा करते हो, उसी को अनुराग ने रत होकर अत्यन्त आसक्ति से पीते हो।
(१३१) शीर्ष-कपाल अपवित्र है, नाक अपवित्र है, विविध अंग अपवित्र है,
छिद्र विछिद्र भी अपवित्र है, (यहाँ तक कि यह शरीर भी) अपवित्र
चर्म से ढका हुआ है। (१३२) अञ्जना से निर्मल, स्नान-उद्वर्तन से संस्कारित, सुकुमाल पुष्पों से
सुशीभित केशराशि से युक्त (स्त्री का मुख) अज्ञानी को राग उत्पन्न करता है। . .
(१३३) अज्ञान बुद्धि वाले जिन फूलों को मस्तक का आभूषण कहते हैं वे
केवल फूल ही है । मस्तक का आभूषण (क्या है, उसे) सुनो!
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org