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तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक
३५ (८१) पहले व्यवहार गणित को देखा गया। दूसरी सूक्ष्म और निश्चयगत
गणित जाननी चाहिए। यदि इस प्रकार न हो तो गणना विषम जाननी चाहिए।'
(समय आदि काल परिमाण का स्वरूप) (८२) सर्वाधिक सूक्ष्म काल, जिसका विभाजन नहीं किया जा सके उसे
समय जानना चाहिए। एक उच्छ्वास निःश्वास में असंख्यात समय
होते हैं। (८३) हष्ट-पुष्ट, ग्लानिरहित और कष्ट रहित पुरुष का जो एक उच्छ्वास
निःश्वास होता है, उसे ही प्राण कहते हैं। (८४) सात प्राणों का एक स्तोक (काल), सात स्तोकों का एक लव और
सतहत्तर लवों का एक मुहूर्त कहा गया है। (८५) हे भगवन् ! एक मुहूर्त में कितने उच्छ्वास कहे गये हैं ? हे गौतम ।
(एक मुहर्त में) तीन हजार सात सौ तिहत्तर उच्छ्वास (होते है)।
सभी अनन्तज्ञानियों के द्वारा यही मुहूर्त (परिमाण) बताया गया है । (८६) दो घड़ी का एक मुहर्त, साठ घड़ी का एक दिन-रात, पन्द्रह दिन
रात का एक पक्ष और दो पक्षों का एक महिना (होता है)।
(काल परिमाण निवेदक घटिका यन्त्र विधान विधि) (८७) अनार के पुष्प की आकृति वाली लोहमयी घड़ी बना करके उसके
तल में छिद्र करना चाहिए । पुनः उस छिद्र प्रमाण को कहूँगा।
(८८) तीन वर्ष के गाय के बच्चे के पूंछ के छियानवें बाल जो सीधे हो और
मुड़े हुए नहीं हो वेसा (उस आकार का) घड़ी का छिद्र होना चाहिए।
१. पूर्व में जिस गणित से सौ वर्ष आयु वाले पुरुष के भोजन और वस्त्र की
गणना की गयी है, वह व्यवहार गणित है । दूसरी सूक्ष्म गणित होती है, जब इसके अनुसार गणना की जाती है, तब व्यवहार गणित की गणना नहीं रहती। दोनों की गणना परस्पर भिन्न जाननी चाहिए ।
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