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________________ तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक १.१ (२२) हे भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव, क्या आहार करता है ? हे गौतम ! उसकी माता, जो नाना प्रकार की रसविकृतियों-तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल, मधुर द्रव्यों का आहार करती है, उसका ही आंशिक रूप से ओज आहार करता है। (गर्भ में स्थित जीव का आहार) (२३) उस गर्भस्थ जीव की फलों के डण्ठल के समान, कमलनाल के आकार वाली नाभि होती है, वह रस ग्राहक नाडी से माता की नाभि से जुड़ी हुई होती है। (२४) उस नाभि से गर्भ, ओज आहार करता है और उसी ओज आहार को ग्रहणकर गर्भ वृद्धि को प्राप्त करता है, यावत् उत्पन्न होता है। . (गर्भस्थ जीव के माता पिता के अंग निरूपण) ... (२५) हे भगवन् ! (गर्भ के) मातृ-अंग किसने होते हैं ? ... ... ... ... हे गौतम ! माता के तीन अंग कहे गये हैं। वे इस प्रकार है-१.. मांस २. रक्त, ३. मस्तक का स्नेह । हे भगवन् ! पिता के कितने अंग. कहे गये हैं ? हे गौतम ! पिता के तीन अंग कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं १. हड्डी २. मजा ३. केश, दाढ़ी, मूंछ, रोम एवं नख । .... (२६) हे भगवन् ! क्या गर्भ में रहा हुआ जीव (गर्भकाल में ही मरकर) नरक में उत्पन्न होता है ? हे गौतम ! कोई उत्पन्न होता है, कोई उत्पन्न नहीं होता है। हे भगवन् ! आप यह किस कारण से कहते हैं. कि गर्भ में विद्यमान कोई जीव नरक में उत्पन्न होता है और कोई. उत्पन्न नहीं होता है ? . हे गौतम! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्या-- प्तियों से पर्याप्त जीव वीर्यलब्धि, विभंगज्ञानलब्धि वैक्रियलब्धि द्वारा शत्रु सेना को आया हुआ सुनकरके विचार करके अपने आत्म प्रदेशों को निकालता है, उन्हें बाहर निकाल करके वैक्रिय समुद्घात करता है, वैक्रिय समुद्घात करके चतुरंगिणी सेना की संरचना करता है, सेना की संरचना करके उससे शत्रु सेना के साथ युद्ध करता है। वह अर्थ का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी काम का कामी, अर्थाकांक्षी, राज्याकांक्षी, भोगाकांक्षी, कामाकांक्षी, अर्थ का प्यासा, राज्य का प्यासा, भोग का प्यासा, काम का प्यासा, उन्हीं चित्त वाला, उन्हीं के मन वाला, उन्हीं की लेश्या वाला, उन्हीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001142
Book TitleAgam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_tandulvaicharik
File Size6 MB
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