SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तंदुलवैचारिक-प्रकीर्णक (मंगलवाच्य) ११) जिनके बुढ़ापा व मृत्यु समाप्त हो गये हैं (ऐसे) जिनेश्वर महावीर को प्रणाम करके (मैं) इस तंदुलवैचारिक (नामक) प्रकीर्णक को कहूँगा। (द्वार) (२) गणित में (मनुष्य की) सौ वर्ष की आयु को दस दशकों में विभाजित किया जाता है, उस सौ वर्ष की आयु के अतिरिक्त जो आयु शेष रहती है, उस आयु अर्थात् गर्भवास काल को सुनो। (३) जितने दिन, रात्रि, मुहूर्त और उच्छ्वास जीव गर्भवास में रहता है, (मैं) उसे एवं उस (गभ) की आहार विधि को कहूँगा।..... (गर्भवास काल प्रमाण) (४) जीव दो सौ सत्तहत्तर सम्पूर्ण दिन-रात्रि और एक आधा दिन गर्भ में रहता है। (५) नियमतः ये दिन और रात जीव को गर्भवास में (लगते ही हैं), परन्तु उपघात (वात्त-पित्त दोष) के कारण इससे कम या अधिक दिनों में भी (जीव) जन्म ले सकते हैं। (६) नियमतः जीव आठ हजार तीन सौ पच्चीस महत तक गर्भ में रहता है, किन्तु (विशेष अवस्था में) इसमें हानि-वृद्धि भी होती है । (७-८) नियमतः (गर्भस्थ) जीव के तीन करोड़ चौदह लाख दस हजार दो सौ पच्चीस (३१४१०२२५) उच्छ्वास निःश्वास होते हैं, (किन्तु) इससे कम या अधिक भी हो सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001142
Book TitleAgam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_tandulvaicharik
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy