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तंदुलवेयालियपइण्णय सम्पादित होता रहा है । अतः इस अवधि में उसमें कुछ संशोधन, परिवर्तन और परिवर्धन भी हुआ है।
प्राचीन काल में यह अर्द्धमागधी आगम साहित्य अंग-प्रविष्ट और अंगबाह्य ऐसे दो विभागों में विभाजित किया जाता था। अंग प्रविष्ट में ग्यारह अंग आगमों और बारहवें दृष्टिवाद को समाहित किया जाता था। जबकि अंगबाह्य में इसके अतिरिक्त वे सभी आगम ग्रन्थ समाहित किये जाते थे, जो श्रुतकेवली एवं पूर्वधर स्थविरों की रचनाएँ माने जाते थे। पुनः इस अंगबाह्य आगम-साहित्य को भी नन्दीसत्र में आवश्यक और आवश्यक व्यतिरिक्त ऐसे दो भागों में विभाजित किया गया है। आवश्यक व्यतिरिक्त के भी पुनः कालिक और उत्कालिक ऐसे दो विभाग किये गये हैं । नन्दीसूत्र का यह वर्गीकरण निम्नानुसार है
श्रुत (आगम )
अंगप्रविष्ट
अंगबाह्य
आचारांग
सूत्रकृतांग
आवश्यक
आवश्यक व्यतिरिक्त
स्थानाङ्ग समवायाङ्ग व्याख्याप्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशांग अन्तकृतदशांग अनुत्तरौपपातिकदशांग प्रश्नव्याकरण विपाक सूत्र दृष्टिवाद
सामयिक चतुर्विशतिस्तव वन्दना प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग प्रत्याख्यान
१. नन्दीसूत्र-सं० मुनि मधुकर, सूत्र ७६, ७९-८१ ।
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