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द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक
(१-१८ मानुषोत्तर पर्वत ) (१) दुर्ग के सदृश आकृति वाला मानुषोत्तर पर्वत पुष्करवरद्वीप के अर्द्ध
भाग को वेष्टित करता हुआ मनुष्य लोक को (तिर्यक् लोक के अन्य
क्षेत्रों से) विभाजित करता है। (२) वह मानुषोत्तर पर्वत (पथ्वीतल से) एक हजार सात सौ इक्कीस
योजन समान रूप से ऊँचा है और मूल में अर्थात् पृथ्वीतल से नीचे
उसकी गहराई चार सौ तीस योजन और एक कोस' है। . (३) अधोभाग में (उस पर्वत का) विस्तार एक हजार बाईस योजन है
तथा मध्य में (उसका) विस्तार सात सौ तेईस (योजन) है । (४) (उस) पर्वत का उपरी विस्तार चार (सौ) चौबीस (योजन) है। ___ अढाई द्वीप में दो समुद्र (लवण समुद्र और कालोदधि) रहे हुए हैं। (५) उस मानुषोत्तर पर्वत के ऊपर (विभिन्न) दिशा-विदिशाओं में सोलह
शिखर हैं, उनके नामों की सूची मैं अनुक्रम से प्रस्तुत कर रहा हूँ। (६-८) मानुषोत्तर पर्वत की पूर्व दिशा में तीन, दक्षिण दिशा में तीन,
पश्चिम दिशा में तीन तथा उत्तर दिशा में तीन-चारों दिशाओं में ( कुल बारह) शिखर इस प्रकार हैं:-१. वेडूर्य, २. मसार, ३. हंसगर्भ, ४. अंजनक, ५. अङ्कमय, ६. अरिष्ट, ७. रजत, ८. जातरूप, ९. शिलप्रभ, १०. स्फटिक, ११. लोहिताक्ष और १२. ववमय
शिखर । (अब) में उनका परिमाण कहता हूँ। (९) इन शिखरों की ऊँचाई पाँच सौ योजन है और मूल में (इनका)
विस्तार भी पांच सौ योजन ही है । (१०) ये शिखर मध्य में तीन सौ पचहत्तर योजन ( विस्तार ) वाले हैं
तथा उपरी तलपर ( इनका ) विस्तार ढाई सो योजन है । १. एक कोस लगभग ३ किलोमीटर के बराबर होता है। २. यद्यपि पूर्व गाथा में १६ शिखरों का उल्लेख हुआ है किन्तु इस गाथात्रिक
में मानुषोत्तर पर्वत को चारों दिशाओं में स्थित १२ शिखरों के ही नाम बतलाए गए हैं।
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