SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२६] श्वेताम्बर परम्परा मान्य आगम ग्रन्थ [२५] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चस्थिमे णं ख्यगवरे पन्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहासोत्थिते य अमोहे य, हिमवं मंदरे तहा। रूअगे रूयगुत्तमे चंदे, अट्टमे य सुदंसणे॥ (स्थानांगसूत्र, ८/९७)* जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रूअगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहारयण-रयणुच्चए य, सव्वरयण रयणसंचए चेव । विजये य बेजयंते जयंते अपराजिते । (स्थानांगसत्र, ८/९८)* [२७] (1) तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्ढियाओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति, तं जहाणंदुत्तरा य णंदा, आणंदा गंदिवद्धणा। विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥ (स्थानांगसत्र, ८/९५) (ii) नंदुत्तरा १ य नंदा २ आणंदा ३ नंदिवरणा ४ चेव । विजया ५ य वेजयंती ६ जयंति ७ अवराइअट्ठमिया ८॥ एमाओ रूयगनगे पुब्वे कूडे वसंति अमरीओ। आदंसगहत्थाओ जणणीणं ठंति पव्वेणं ।। (तित्थोगाली प्रकीर्णक, गाथा १५३-१५४ ) [२८] (6) तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्ढियामओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति, तं जहासमाहारा सुपतिण्णा, सुप्पबुद्धा जसोहरा। लच्छिवती सेसवती, चित्तगुत्ता वसुधरा ॥ (स्थानांगसूत्र, ८/९६) (ii) ख्यगे दाहिणकूडे अट्ठ समाहारा १ सुप्पइण्णा २ य । तत्तो य सुप्पबुद्धा ३ जसोधरा ४ चेव लच्छिमई ५ ॥ सेसवति ६ चित्तगुत्ता ७ जसो (वसु)धरा ८ चेव गहियभिंगारा। देवीण दाहिणणं चिट्रति पगायमाणीओ॥ (तित्थोगाली प्रकीर्णक, गाथा १५५-१५६ ) * द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में इन शिखरों को रुचक पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy