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________________ भूमिका २१ मानवक चैत्य स्तम्भ की पूर्व दिशा में आसन, पश्चिम दिशा में शय्या, शय्या की उत्तर दिशा में इन्द्रध्वज तथा इन्द्रध्वज की पश्चिम दिशा में चौप्पाल नामक शस्त्र भण्डार माना गया है और कहा है कि यहाँ स्फटिक मणियों एवं शस्त्रों का खजाना रखा हुआ है ( १९८ १९९ ) । ग्रन्थ में जिनमंदिर और जिनप्रतिमाओं का विशेष विवरण उपलब्ध है । जिनमंदिर में जिनदेव की एक सौ आठ प्रतिमाओं, प्रत्येक प्रतिमा के आगे एक-एक घण्टा तथा प्रत्येक प्रतिमा के दोनों पार्श्व में दोदो चँवरधारी प्रतिमाएँ मानी गई हैं । शेष सभाओं में भी पीठिका, आसन, शय्या, मुखमण्डप, प्रेक्षागृह, हृद, स्तूप, चैत्य स्तम्भ, ध्वज एवं चैत्य वृक्षों आदि का यही वर्णन निरूपित किया गया है ( २००-२०६ ) । ग्रन्थ के अनुसार चमरचंचा राजधानी की उत्तर दिशा में अरुणोदक समुद्र में पाँच आवास हैं। आगे सोमनसा, सुसीमा तथा सोमन्यमा नामक तीन राजधानियाँ और उनका परिमाण बतलाया गया है । यह भी कहा गया है कि वहाँ वरुणदेव के चौदह हजार तथा नलदेव के सोलह हजार आवास हैं । इन राजधानियों के बाहरी वर्तुल पर सैनिकों और अंगरक्षकों के आवास माने गये हैं । पुनः अरुण समुद्र में उत्तर दिशा की ओर भी सोमनसा, सुसीमा और सोम-यमा-ये तीनों राजधानियाँ मानी गई हैं, अन्तर यह है कि यहाँ स्थित इन राजधानियों का विस्तार परिमाण उन राजधानियों से दो हजार योजन अधिक माना गया है । यहाँ वरुणदेव और नलदेव के आवासों की चर्चा करते हुए उनके भी दो-दो हजार आवास अधिक माने गए हैं, जो विचारणीय हैं ( २०७-२१८ ) । जम्बूद्वीप में दो, मानुषोत्तर पर्वत में चार तथा अरुण समुद्र में देवों के छः आवास माने गये हैं तथा कहा गया है कि उन आवासों में ही उन देवों की उत्पत्ति होती है। असुरकुमारों, नागकुमारों एवं उदधिकुमारों के आवास अरुण समुद्र में माने गये हैं और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होना माना गया है । इसी प्रकार द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, अग्निकुमारों तथा स्तनितकुमारों के आवास अरुण द्वीप में माने गए हैं और यह कहा गया है कि उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है ( २२१-२२३ ) । ग्रन्थ की अन्तिम दो गाथाओं में चन्द्र-सूर्यों की संख्या का निरूपण करते हुए कहा गया है कि पुष्करवर द्वीप के ऊपर एक सौ चौवालीस चन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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