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________________ भूमिका दिशाओं में नानारत्नों से विचित्र प्रकाश करने वाले आठ-आठ शिखर माने गये हैं ( ११७-१२६ )। इन शिखरों पर पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से चारों दिशाओं में एक पल्योपम काय-स्थिति वाली आठ-आठ दिशाकुमारियाँ कही गई हैं (१२७-१३५)। रुचक पर्वत पर प्रर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से द्वीपाधिपति देवों के चार आवास बतलाये गये हैं। पुनः यह कहा गया है कि इन्हीं नाम वाले आवास दिशाकुमारियों के भी हैं (१३६-१३८ ) । आगे पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से चार-चार शिखरों का उल्लेख करते हुए कहा है कि इन शिखरों पर डेढ़ पल्योपम कायस्थिति वाली दिशाकुमारियाँ रहती हैं ( १३९-१४२ )। ___ ग्रन्थ में पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से चारों दिशाओं में चार दिग्रहस्ति शिखर तथा उन पर डेढ़ पल्योपम काय स्थिति वाले दिग्रहस्ति देव कहे गये हैं ( १४३-१४४)। आगे की गाथाओं में पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से चारों दिशाओं में चार शिखर कहे गये हैं, उन शिखरों को सविशेष पल्योपम काय-स्थिति वाली विद्युतकुमारी देवियों के माने हैं (१४५१४८)। ____ ग्रन्थ में उल्लेख है कि रुचक पर्वत के बाहर आठ लाख चौरासी हजार योजन चलने पर रतिकर पर्वत आते हैं। इन रतिकर पर्वतों को शक्र, ईशान और सामानिक देवों के उत्पाद पर्वत माना गया है । उत्पाद पर्वतों की चारों दिशाओं में जम्बूद्वीप के समान लम्बाई-चौड़ाई वाली चार राजधानियां कही गई हैं ( १४९-१५५)। ___ ग्रन्थ में जम्बूद्वीप आदि द्वीप-समुद्रों तथा मानुषोत्तर पर्वत पर दो-दो, एवं रुचक पर्वत पर तीन अधिपति देव माने हैं। इनके पश्चात् स्थित अन्य द्वीप-समुद्रों में उनके समान नाम वाले अधिपति देव माने गये हैं। पुनः यह भी कहा गया है कि एक समान नाम वाले असंख्य देव होते हैं (१५६१६३)। वासों, द्रहों, वर्षधर पर्वतों, महानदियों, द्वीपों और समुद्रों के अधिपति देव एक पल्योपम कायस्थिति वाले कहे गए हैं। आगे यह भी उल्लिखित है कि द्वोपाधिपति देवों को उत्पत्ति द्वीप के मध्य में तथा समुद्राधिपति देवों को उत्पत्ति विशेष क्रीड़ा-द्वीपों में होती है ( १६४१६५ )। रुचक समुद्र में असख्यात् द्वीप-समुद्र हैं । रुचक समुद्र में पहले अरुण द्वीप और उसके बाद अरुण समुद्र आता है। अरुण समुद्र में दक्षिण दिशा की ओर तिगिञ्छि पर्वत माना गया है। तिगिञ्छि पर्वत का विस्तार एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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