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________________ दोवसागरपणत्तिपइण्णयं धवलाटीका में हुआ है।' उसमें दृष्टिवाद के पांच अधिकार बतलाए गए हैं-(१) परिकर्म, (२) सूत्र, (३) प्रथमानुयोग, (४) पूर्वगत और (५) चूलिका । पुनः परिकर्म के पाँच भेद किये हैं-(१) चन्द्रप्रज्ञप्ति, (२) सूर्यप्रज्ञप्ति, (३) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, (४) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति तथा (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति । दिगम्बर परम्परा के ही मान्य ग्रन्थ अंगपण्णत्ति में भी. परिकर्म के पाँच भेद इसी रूप में उल्लिखित हैं।२ दृष्टिवाद के पाँच विभागों या अधिकारों की चर्चा तो श्वेताम्बर मान्य आगम समवायांग और नन्दीसूत्र में भी है, परन्तु दिगम्बर परम्परा में मान्य परिकर्म के ये पाँच भेद श्वेताम्बर परम्परा मान्य आगमों में नहीं मिलते हैं। ___श्वेताम्बर परम्परा में समवायांगसूत्र एवं नन्दीसूत्र में धवलाटीका के. अनुरूप ही दृष्टिवाद के निम्न पाँच अधिकार उल्लिखित हैं (१) परिकर्म, (२) सूत्र, (३) पूर्वगत, (४) अनुयोग और (५) चूलिका । वहाँ परिकर्म के पाँच भेद नहीं करके निम्न सात भेद किये गये हैं-(१) सिद्धश्रेणिका-परिकर्म, (२) मनुष्यश्रेणिका-परिकर्म, (३) पृष्टश्रेणिका-परिकर्म, ( ४ ) अवगाहन श्रेणिका-परिकर्म (५) उपसंपद्यश्रेणिका-परिकर्म, (६) विप्रजहतश्रोणिका-परिकर्म और (७) च्युताच्युतश्रोणिका-परिकर्म । इस प्रकार स्पष्ट है दिगम्बर परम्परा ने दृष्टिवाद. के अन्तर्गत परिकर्म के पाँच भेदों में द्वीपसागरप्रज्ञप्ति की गणना की है किन्तु श्वेताम्बर परम्परा ने द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का उल्लेख दृष्टिवाद के एक विभाग परिकर्म में नहीं करके चार प्रज्ञाप्तियों में किया है । ज्ञातव्य १. तस्स पंच अत्याहियारा हवंति, परियम्म-सुत्त-पढमाणियोग-पुव्वगयं-चुलिका चेदि । जंतं परियम्मं तं पंचविहं । तं जहा-चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती जंबूदीव-- पण्णत्ती, दीवसायरपण्णत्ती, वियाहपण्णत्ती चेदि । (षट्खण्डागम, १/१/२ पृष्ठ १०९) २. अंगपण्णत्ती, गाथा १-११ । ३. (क) दिट्टिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविज्जति । से समासओ पंचविहे. पण्णत्ते । तंजहा-परिकम्मं सुत्ताई पुज्वगयं अणुओगो चूलिया। (ख) नन्दीसूत्र, सूत्र ९६ (समवायांग, सूत्र ५५७) ४. (क) परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते । तं जहा-सिद्धसेणियापरिकम्मे मणुस्स सेणियापरिकम्मे पुट्ठसेणियापरिकम्मे ओगाहणसेणिमापरिकम्मे उपसंपज्ज सेणियापरिकम्मे विप्पजहसेणियापरिकम्मे चुआसुअसेणियापरिकम्मे । (ख) नन्दीसूत्र, सूत्र ९७ (समवायांग, सूत्र ५५८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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