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________________ दीवसागरपण्यत्तिपइण्णयं प्रज्ञप्ति का उल्लेख प्राप्त होता है। इन दोनों ही ग्रन्थों में आवश्यक व्यतिरिक्त कालिक श्रुत के अन्तर्गत द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का उल्लेख मिलता है ।' नन्दीसूत्र का रचनाकाल भी पाँचवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है । इस आधार पर यह मानना होगा कि उसके पूर्व द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का निर्माण हो चुका था। पाक्षिकसूत्र भी पर्याप्त रूप से प्राचीन हैं अतः उसमें इस ग्रन्थ का उल्लेख होना इसकी प्राचीनता का परिचायक है। इसके अतिरिक्त नन्दीसूत्र चूर्णी, आवश्यकसत्र चुर्णी एवं पाक्षिकसूत्र की वृत्ति में भी द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का नामोल्लेख उपलब्ध है। पाक्षिकसूत्र वृत्ति के अनुसार यह ग्रन्थ द्वीपों एवं सागरों का विवरण प्रस्तुत करता है । इन सभी ग्रन्थों में द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का उल्लेख यह सूचित करता है कि जैनागमों की देवद्धिगणी की वाचना से पूर्व यह ग्रन्थ अस्तित्व में आ चुका था। ___ जैन आगम-स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, व्याख्याप्रज्ञप्ति, राजप्रश्नीयसूत्र, जीवाजोवाभिगमसूत्र तथा सूर्यप्रज्ञप्ति आदि में यत्र-तत्र द्वीप-समुद्रों से संबंधित विषयवस्तु उपलब्ध होती है, लेकिन यह विषयवस्तु वहाँ विकीर्ण रूप में ही उपलब्ध है क्योंकि इनमें से किसी भी ग्रन्थ में द्वीप-समुद्रों का सांगोपांग एवं सुव्यवस्थित विवरण नहीं मिलता है, जबकि द्वोपसागरप्रज्ञप्ति में मानुषोत्तर पर्वत के आगे स्थित द्वीप-समुद्रों का सांगोपांग एवं सुव्यवस्थित विवरण है। पुनः स्थानांगसूत्र एवं सूर्यप्रज्ञप्ति आदि आगम ग्रन्थों में इसकी आंशिक विषयवस्तु गद्य रूप में मिलती है, जबकि यह ग्रन्थ प्राकृत पद्यों में रचा गया है। आज यह कहना तो कठिन है कि यह १. (क) कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा-(१) उत्तराज्य णाई......" (९) दीवसागरपण्णत्ती""""(३१) वण्हीदसाओ । ( नन्दीसूत्र-मुनि मधुकर, पृष्ठ १६३) (ख) इमं वाइअं अंगबाहिरं कालिअं भगवंतं तंजहा-उत्तराज्झयणाई (१)""दीवसागरपण्णत्ती (२)"" ""तेअग्गिनिसग्गाणं (३६) । (पाक्षिकसूत्र-देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड, पृष्ठ ७९) २. (क) नन्दीसूत्र चूर्णी, पृष्ठ ५९ ( प्राकृत टेक्स्ट सोसायटो, वाराणसी )। (ख) श्रीमद् आवश्यकसूत्रम्, पृष्ठ ६ ( श्री ऋषभदेव जी केशरीमल जी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम) (ग) द्वीपसागराणं प्रज्ञापनं यस्यां सा द्वीपसागरज्ञप्तिः । (पाक्षिकसूत्र, पृष्ठ ८१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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