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________________ द्वीपसागरप्रज्ञति प्रकीर्णक (२१७) इसके बाद बाहरी वर्तुल पर पश्चिम दिशा में अनीकों ( सैनिकों ) के और चारों दिशाओं में अंगरक्षकों के रत्न चित्रित बारह हजार ( आवास ) हैं । (२१८) वहाँ अरूण देव के सोलह हजार कल्याणकारी आवास हैं तथा नल देव के अठारह हजार वज्रमय आवास हैं । " ४७ (२१९-२२०) दक्षिण दिशा में नागकुमार धरणदेव की सुखवती तथा उत्तर दिशा में नागकुमार भूतानन्द देव को गन्धवती नामक राजधानियाँ हैं, ये एक हजार योजन ऊँची, मूल में एक हजार योजन विस्तीर्ण, मध्य में साढ़े सात सौ योजन विस्तीर्ण तथा ऊपर में पाँच सौ योजन विस्तीर्ण हैं | (२२१) इसीप्रकार जम्बूद्वीप में दो, मानुषोत्तर पर्वत में चार तथा अरूण समुद्र में देवों के छ: ( आवास हैं) और उन्हीं में उनको उत्पत्ति होती है । (२२२) असुरकुमारों, नागकुमारों एवं उदधिकुमारों के आवास अरुणोदक समुद्र में हैं और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है । (२२३) द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, अग्निकुमारों और स्तनितकुमारों के आवास अरूणवर द्वीप में हैं और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है । (२२४) (पुष्करवर द्वीप के ऊपर ) एक सौ चौवालीस चन्द्र और एक सौ चौवालीस सूर्यो की पंक्तियाँ हैं, इसके आगे चन्द्र-सूर्यों की पंक्तियों में चार गुणा वृद्धि होती है । ( २२५) जो द्वीप और समुद्र जितने लाख योजन विस्तार वाला होता है वहाँ उतनी ही चन्द्र और सूर्यों की पंक्तियां होती हैं । १. ज्ञातव्य है कि पूर्व गाथा क्रमांक २११ में वरूण देव के चौदह हजार कल्याणकारी आवास तथा नलदेव के सोलह हजार वज्रमय आवास कहे गये हैं । दो-दो हजार आवासों का यह अन्तर विचारणीय है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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