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________________ द्वीपसागरप्रशप्ति प्रकीर्णक ४३ (१९४) उन पीठिकाओं के ऊपर महेन्द्रध्वज है। उनके आगे नंदा पुष्करिणी है जो दस योजन गहरी तथा सभी ओर से दस योजन ही विस्तार वाली है। (१९५) इसीप्रकार का वर्णन जिनमंदिर का तथा शेष बची हुई सभाओं का भी है, किन्तु जो कुछ भिन्नता है उसको मैं यहाँ संक्षेप में कहता हूँ। (१९६) बहमध्य भाग में जो चबुतरा है उस पर मानवक चैत्य स्तम्भ है। (वह स्तम्भ ) नीचे चौबीस करोड़ अंश' वाला तथा ऊपर साढ़े बारह करोड़ अंश वाला है। (१९७) ( मानवक चैत्य स्तम्भ पर ) फलक हैं उन फलकों पर खूटियाँ है और उन खंटियों पर वज्रमय सीके लटक रहे हैं, उन सींकों में डिब्बे हैं, उनमें जिन भगवान् की अस्थियां हैं, ऐसा प्रज्ञप्त है। (१९८) मानवक चैत्य स्तम्भ की पूर्व दिशा में आसन तथा पश्चिम दिशा में शय्या है । शय्या की उत्तर दिशा में ऊँचा इन्द्र ध्वज है। (१९९) इन्द्रध्वज की पश्चिम दिशा में चोप्पाल नामक शस्त्र भण्डार है, जहाँ प्रमुख स्फटिक मणियों एवं शस्त्रों का खजाना रखा हुआ है। (२००) वहां जिन-मन्दिर में वेदियों पर जिनदेव की एक सौ आठ प्रतिमाएं हैं और उनके सम्मुख एक सौ आठ घण्टे हैं। प्रत्येक जिन प्रतिमा के दोनों पार्यों में दो चँवरधारी प्रतिमाएँ हैं। (२०१) शेष सभाओं के मध्य में सर्वाधिक सुन्दर मणि-मय पीठिकायें हैं, उन पर बहुमूल्यवान् आसन हैं। उपपात सभा में भी (सुधर्मा सभा की तरह) शय्या है। (२०२) वहाँ द्वार-मण्डपों के द्वार परिमाण वाले मुखमण्डप, प्रेक्षागृह, हृद तथा आठ स्तूप हैं। (२०३) बीस ( योजन ) ऊँचे तथा आधा योजन विस्तार वाले मानवक चेत्य स्तम्भ पर आधा योजन बाहर निकले हुए महेन्द्रध्वज तथा इन्द्रध्वज हैं। (२०४) जिनवृक्षों, सुधर्मा सभाओं तथा चैत्य गृहों पर जो पीठिकाएँ हैं (वे ) चार योजन मोटी तथा आठ योजन लम्बी-चौड़ी हैं। १. 'अंश' माप विशेष को कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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