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द्वीपसागरप्रशप्ति प्रकीर्णक
से दो-दो अधिपति देव हैं । ( धातकीखण्ड द्वीप में ) (१) प्रियदर्शन
और (२) प्रभास, ( कालोदधि समुद्र में ) (१) कालदेव और (२) महाकाल, ( पुष्करवर द्वीप में ) (१) पद्म और (२) महापन, (पुष्करवरसमुद्र में ) (१) श्रीधर और (२) महोधर, ( वारुणोवरद्वीप में ) (१) प्रभ और (२) सुप्रभ, ( वारुणीवर समुद्र में ) (१) अग्निदेव और (२) अग्नियश, (क्षीरवर द्वीप में ) (१) कनक
और (२) कनकप्रभ, (क्षीरवर समुद्र में ) (१) कान्त और (२) अतिकान्त, (घृतवर द्वीप में ) (१) दामद्धि और (२) हरिवारण, (घृतवर समुद्र में) (१) सुमन और (२) सौमनस, (क्षोदवर द्वीप में ) (१) अविशोक और (२) वीतशोक, (क्षोदवर समुद्र में ) (१) सुभद्रभद्र और (२) सुमनभद्र इसी प्रकार शंखवर द्वीप में (१) शंख और (२) शंखप्रभ देव तथा शंखवर समुद्र में स्थित (१) कनक और (२) कनकप्रभ नामक ये दो-दो अधिपति देव अभिवादन योग्य हैं।
(१६१-१६२) इसी प्रकार ( नन्दीश्वरद्वीप में ) (१) मणिप्रभ और
(२) मणिहंस, ( नन्दीश्वर समुद्र में ) (१) कामपाल और (२) कुसुमकेतु, ( अरुणवर द्वीप में ) (१) कुंडल और (२) कुंडलभद्र, ( अरुणवर समुद्र में ) (१) समुद्रभद्र और (२) सुमनभद्र, रुखक पर्वत पर (१) सर्वार्थ, (२) मनोरथ और (३) सर्वकामसिद्ध (ये तीन ) देव हैं तथा मानुषोत्तर पर्वत पर (१) चक्षुसुख और (२) चक्षु कांत-ये दो अधिपति देव हैं।
(१६३) इनके पश्चात् अन्य द्वीपों और समुद्रों में उनके ही समान नाम
वाले अधिपति देव हैं । पुनः यह जानना चाहिए कि एक समान नाम वाले असंख्य देव होते हैं।
(१६४) वासों, द्रहों, वर्षधर पर्वतों, महानदियों, द्वीपों और समुद्रों के
अधिपति देव एक पल्योपम काय-स्थिति वाले होते हैं।
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