________________
३२
दीवसागरपण्ण त्तिपइण्णयं
भद्दा १ य सुभद्दा २ या कुमुया ३ पुण होइ पुंडरिगिणी ४ उ । चक्कज्झया १ य सच्चा २ सव्वा ३ वयरज्झया ४ चेव ॥ १५४ ॥
एवं ईसाणस्स वि सामाणसुराण रइकरा रम्मा । नंदाईणगरीहि उ परियरिया उत्तरे पासे ।। १५५ ।।
[ गा० १५६ -- १६५. जंबुद्दीवाइ दीव-समुद्दाणं अहिवइणो देवा ] बुद्धीवाहिवई अगाढिओ, सुट्ठिओ य लवणस्स । एत्तो य आणुपुव्वी दो दो दीवे समुद्दे य ॥१५६॥
१. " आदर - अणादरक्रखा जंबूदीवस्स अहिवई होंति । तह य पभासो पियदंसणो य लवणंबुरासिम्मि ॥ ३८ ॥ भुंजेदि प्पियणामा दंसणणामा य धादईसंडं । कालोदयस्स पहुणो काल - महाकालणामा य ॥ ३९ ॥ पउमो पुंडरिक्खो दीवं भुजंति पोक्खरवरक्खं । चक्खु सुक्खु पहुणो होंति य मणुसुत्तरगिरिस्स ॥ ४० ॥ सिरपहु-सिरिघरणामा देवा पा ंति पोक्खरसमुद्द । वरुणो वरुण हक्खो भुजंते चारु वारुणीदीवं ॥ ४१ ॥ वारुणिवरजलहिपहू णामेणं मज्झ मज्झिमा देवा | पंडुरपुप्फदंता दीवं भुजति वीरवरं ।। ४२ ।। विमलपहक्खो विमलो खीरवरं वाहिणीस आहेवइणो । सुप्पह-घदवरदेवा घदवरदोवस्त अधिणाहा ॥ ४३ ॥ उत्तर- महप्पहक्खा देवा रक्खति घदवरंबुणिहि । कण-कणयाभणामा दीवं पालंति खोदवरं ॥ ४४ ॥ पुण्ण-पुण्णपक्खा देवा रक्खति खोदवरसिंधु । नंदीसरम्मि दीवे गंध-महागंधया पहुणो ।। ४५ ।। णंदीसरवारिणिहि रक्खते गंदि - नंदिपहुणामा । चंद-सुभद्दा देवा
भुजं
अरुणवरदीवं ॥ ४६ ॥
अरुणवरवारिरासि रक्खते अरुण अरुण पहणामा | अरुणभासं दीवं भुजंति सुगंध - सव्वगंधसुरा ॥ ४७ ॥ सेसाणं दीवाणं वारिणिहीणं च अहिवई देवा ।
जे केइ ताण णामस्सुवएसो संपहि पणट्ठो ॥ ४८ ॥ पढमपवणिददेवा दक्खिणभागम्मि दीव उवहीणं । चरिमुच्चारिददेवा चेट्ठते उत्तरे भाए ॥ ४९ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org