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________________ विषयानुक्रमणिका mm ~ ~ d . १२१ १२३ १२६ प्रतिज्ञादि पाँच अवयव कार्य हेतु कारण हेतु पूर्वचर हेतु उत्तरचर हेतु सहचर लिंग विरुद्धोपलब्धि के भेद अविरुद्धानुपलब्धि के भेद विधि के अस्तित्व को सिद्ध करने में विरुद्धानुपलब्धि के भेद तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति आगम का स्वरूप मीमांसकों की आपत्ति मीमांसकों का निराकरण शब्दादि वस्तु का ज्ञान कराने के कारण हैं अन्यापोह का निराकरण चतुर्थ समुददेश प्रमाण का विषय सांख्याभिमत प्रधान तथा उसका निराकरण बौद्धों के अनुसार विशेष ही वस्तु का स्वरूप है बौद्धों का निराकरण क्षणिकत्व का निराकरण परस्पर निरपेक्ष सामान्य विशेष की मान्यता वाले योगों का निराकरण अनेकान्तात्मक वस्तु के समर्थन हेतु हेतुद्वय दो प्रकार का सामान्य विशेष के दो भेद पर्याय आत्मा के व्यापकपने का निराकरण आत्मा के पृथिव्यादिचतुष्टय रूप होने की असम्भावना व्यतिरेक पञ्चम समुददेश प्रमाण के फल फल प्रमाण से कथञ्चित् अभिन्न है और कथञ्चित् भिन्न है १२८ १२९ १३४ १४७ १४८ १५४-१८९ १५४ १५४ १५९ १६५ १६८ १७३ १८१ १८२ १८३ १८३ १८४ १८६ १८८ १९०-१९१ १९० १९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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