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________________ षष्ठः समुद्देशः २१३ उदाहरणमाहयथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः सन्ति, धावध्वं माणवकाः ॥५२॥ कश्चिन्माणवकैराकुलीकृतचेतास्तत्सङ्गपरिजिहीर्षया प्रतारणवाक्येन नद्या देश तान् प्रस्थापयतीत्याप्तोक्तेरन्यत्वादागमाभासत्वम् । प्रथमोदाहरणमात्रेणातुष्यन्नुदाहरणान्तरमाह__अमुल्यग्रे हस्तियूथशतमास्त इति च ॥ ५३ ॥ अत्रापि साङ्ख्यः स्वदुरागमजनितवासनाहितचेता दृष्टेष्टविरुद्धं सर्व सर्वत्र विद्यत इति मन्यमानस्तथोपदिशतीत्यनाप्तवचनत्वादिदमपि तथेत्यर्थः। कथमनन्तरयोर्वाक्ययोस्तदाभासत्वमित्यारेकायामाह विसंवादात् ॥ ५४॥ अविसंवादरूपप्रमाणलक्षणाभावान्न तद्विशेषरूपमपीत्यर्थः । हुए पदार्थ के ज्ञान को आगमाभास कहते हैं ॥५१॥ उदाहरण कहते हैं सूत्रार्थ-जैसे-नदी के किनारे मोदकों की राशियाँ हैं, हे बच्चो ! दौड़ो ॥५२॥ कोई व्यक्ति बालकों से व्याकूलचित्त था, उनका संग छड़ाने की इच्छा से छलपूर्ण वाक्य कहकर उन्हें नदी के तट पर भेजता है, इस प्रकार विश्वस्त व्यक्ति से भिन्न कथन करने पर आगमाभासपना है । प्रथम उदाहरण से सन्तुष्ट न होते हुए अन्य उदाहरण कहते हैं सूत्रार्थ-अंगुली के अग्रभाग पर हाथियों के सैकड़ों समुदाय विद्यमान हैं ।।५३॥ इस उदाहरण में भी सांख्य अपने मिथ्या आगम जनित वासना से आक्रान्तचित्त होकर प्रत्यक्ष और अनुमान से विरुद्ध सब वस्तुयें सब जगह विद्यमान हैं, इस प्रकार मानता हुआ नदी के तीर पर लड्डू हैं, इस प्रकार का कथन करता है। यह वाक्य अनाप्त पुरुष का वचन होने से आगमाभास है। उपयुक्त दोनों वाक्यों के आगमाभासपना कैसे है ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं सूत्रार्थ-क्योंकि विसंवाद पाया जाता है ॥५४॥ अविसंवाद रूप प्रमाण के लक्षण का अभाव होने के कारण उन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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